Wednesday, July 8, 2009

"उयघूर दमन" पर उतारु चीन

वैसे ऐसा बहुत कम होता है कि दुनिया भर में कहीं भी मुस्लिम समुदाय या व्यक्ति पर, गलत/सही कोई भी कार्रवाई हो, चाहे ऐसे मामलों में मुस्लिम समुदाय ही दोषी क्यों न हो, दुनिया भर के मुस्लिम देशों में विरोध की आवाज जरुर उठती रही है मगर चीन में "उयघूर" मुस्लिमों के दमन पर अभी तक किसी भी देश ने कोई बयान जारी नहीं किया है. फ्रांस की सरकार ने हाल ही में जब बुर्के को महिलाओं की गुलामी की निशानी बताकर उस पर प्रतिबंध लगा दिया था तो कई मुस्लिम देशों ने इसे अपनी स्वतंत्रता और तहजीब पर आघात मानकर इसके खिलाफ आवाज उठायी थी. फ्रांस सरकार का यह फैसला गलत था या सही यह तो बात की बात लेकिन इन देशों का बुर्के के पक्ष में उनकी तहजीब और स्वतंत्रता पर खतरा उत्पन्न होने की दलील जरा गले नहीं उतरी क्योंकि महिलाओं को बुर्का पहनने पर मजबूर करना भी तो उनकी स्वतंत्रता पर तुषारापात जैसा ही है. इस बात पर आश्चर्य होता है उयघूर मुस्लिमों पर हो रहे अत्याचार के विरुद्ध पश्चिमी देशों से आवाज उठ रही है लेकिन सारी दुनिया के मुसलमानों के हितों के लिए संघर्ष का दावा करने वाले ठेकेदार देश पाकिस्तान, ईरान और सउदी अरब की चीन के सामने घिग्घी बंधी हुई है। खैर, बात उयघूरों की
चीन के शिनझियांग प्रांत के उरुकमी में उयघूर मुस्लिमों और हान चीनियों के बीच पिछले कुछ दिनों की टकराव में सैकड़ों लोगों के मारे जाने के बीच मुस्लिम देशों की चुप्पी सालने वाली है। वैसे उयघूर मुस्लिमों के प्रति चीनी सरकार का यह दमनात्मक रवैया कोई पहली बार नहीं है। कई बार तो खबरों पर सरकारी नियंत्रण के चलते ऐसी खबरें बाहर नहीं आ पातीं. पिछले दो-तीन दिनों में शिंनझियांग के उरुकमी में उयघूर मुस्लिमों और हान चीनियों के बीच संघर्ष में पौने दो सौ उयघूर मुस्लिम मारे गये हैं। लगभग एक हजार घायल हैं। इस बीच शहर में कर्फ्यू लगा दिया गया है जिसका सीधा सा मतलब है कि उयघूरों के प्रति चीनी सरकार के रवैये में कोई अंतर आने वाला नहीं है. चीन की इस दमनात्मक नीति के खिलाफ उयघूर मुस्लिम विरोध का झंडा बुलंद किए हुए हैं. इन विरोध प्रदर्शनों की सारी कार्रवाई, विश्व उयघूर कांग्रेस की नेता रबिया कदीर द्वारा चलायी जा रही है. रबिया कदीर उयघूर की एक निर्वासित महिला व्यावसायी हैं और फ़िलहाल अमेरिका में हैं. सुश्री कदीर को चीन सरकार ने अलगाववादी कार्रवाइयों में संलिप्त रहने का आरोप लगा कर उन्हें कई सालों तक जेल में बंद रखा था. उयघूर अलगाववादी समूहों का कहना है कि लोगों का विरोध सरकारी नीतियों और आर्थिक लाभों पर हान चीनी एकाधिकार के खिलाफ़ है. लेकिन अपनी भौगोलिक सीमा बढ़ाने को लेकर अक्सर ही दादागिरी करने वाला चीन इसे हिंसा फैलने के तौर पर देख रही है. वैसे भी चीनी सरकार ने कभी उयघूर मुस्लिमों के प्रति सम्माजनक नजरिए से देखने की जरुरत नहीं समझी.
* क्यों हुआ संघर्ष
दरअसल संघर्ष की वास्तविक वजह सालों से चले आ रहे चीनियों व उयघूरों के परस्पर संबंधों में छिपी है। दूसरे शब्दों में कहें तो आज मूल चीनी हान समुदाय व उइगरों के बीच सौहा‌र्द्र का एक अंश भी नहीं बचा। उयघूर और हान चीनियों के बीच हुई हिंसा के पीछे की कहानी यह है कि पिछले महीने उरुमकाई शहर की एक स्थानीय वेबसाइट पर यह लिख दिया गया कि शिनझियांग प्रांत से आए हान मूल के लड़कों ने दो उयघूर लड़कियों के साथ बलात्कार किया है. इसके बाद ही हान और उयघूर समुदायों के बीच संघर्ष में दो लोगों की मौत हो गयी थी जबकि 118 घायल हो गये थे. उस घटना के बाद से दोनों ही समुदायों में बदले की आग सुलग रही थी जिसने बीते रविवार की रात दंगों का रुप ले लिया. दंगों की शुरुआत शिनझियांग की राजधानी उरुमकी में शुरु हुई. इसके बाद से ही हुए संघर्ष में 166 से अधिक लोग मारे गये. चूंकि इस इस संघर्ष के बाद चीनी सरकार ने इंटरनेट पर रोक लगा दी, इसलिए उसकी कार्रवाई पर संदेह होना लाजिमी है.
* संघर्ष के मूल में कुछ और तो नहीं
वैसे इस संघर्ष के मूल में कुछ दूसरी कहानी भी हो सकती है. उयघूर मुस्लिमों का आरोप है कि चीन की सरकार हान लोगों कों उरुमकाई शहर में जबरदस्ती बसा रही है. उरूमकाई शहर (शिनझियांग प्रांत) की बात करें तो यह चीन का मुस्लिम बहुल इलाका है। उरुमकाई की आबादी लगभग 23 लाख के करीब है जबकि शिनझियांग क्षेत्र में 80 लाख उयघूर मुस्लिम हैं. ये उयघूर समुदाय चीनी सरकार पर अपने अधिकारों के दमन का आरोप लगाते रहे हैं। शिनझियांग प्रांत मूल रुप से उयघूरों का ही क्षेत्र है लेकिन उसकी स्वायत्तता चीन को बर्दाश्त नहीं हुई और पूर्व में उसने इस क्षेत्र पर अपना कब्जा जमाने के बाद धीरे-धीरे चीन के मूल निवासियों हान को बसाना शुरु कर दिया. इससे न सिर्फ असंतुलन बढ़ा बल्कि इन दोनों समुदायों के बीच संघर्ष शुरु हो गया. इस संघर्ष के बहाने चीन सरकार को अपनी दमनात्मक नीति को आगे बढ़ाने का मौका और छूट मिल गयी. वैसे भी उसकी बढ़ती ताकत को देखकर कोई और देश उसके खिलाफ आवाज नहीं उठा पाता. उयघूर की स्थिति की तुलना चीन के कब्जे वाले तिब्बत से की जाती है। ऐतिहासिक संदर्भों का उल्लेख कर चीन जिस तरह तिब्बत को हड़पे बैठा है वैसा ही उसने शिंनझियांग प्रांत के तेल बहुल उस इलाके में किया जहां उयघूर मुसलमान अधिक हैं। लेकिन तिब्बत की तुलना में शिंनझियांग की परिस्थितियां थोड़ी भिन्न हैं। वैसे चीनी की नजर इस क्षेत्र पर इसलिए भी है क्योंकि यह तेल व खनिज भंडारों से समृद्ध है. शिनझियांग की सीमा मध्य एशिया के आठ देशों को छूती हैं, जिनमें भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान भी शामिल हैं। चीन की बढ़ती आर्थिक व राजनीतिक ताकत के प्रति उयघूर नाखुशी दर्शाते रहे हैं। उयघूरों व चीनियों के संबंध सदियों पहले सिल्क रूट से जुड़े हैं। इसी सिल्क मार्ग से पश्चिम एशिया, यूरोप व भारतीय उपमहाद्वीप में चीनी रेशम का व्यापार होता था। लेकिन बीते रविवार को शिनजियांग की राजधानी उरुमकी में भड़के दंगों में सारी सीमाएं टूट गईं।
* उयघूर कौन
इस्टर्न और सेंट्रल एशिया में निवास करने वाले उयघूर मूलत: तुर्की समुदाय से संबंध रखने वाले मुस्लिम हैं। वर्तमान की बात करें तो ये मुख्यरुप से चीन के शिनझियांग क्षेत्र में रहते हैं जिसे "शिनजियांग उयघूर ऑटोनॉमस रीजन" कहा जाता है. वैसे इसे इसके विवादास्पद "उयघूरस्तान/पूर्वी तुर्कीस्तान" के नाम से भी जाना जाता है. (अंग्रेजी में Uyghur, Uighur, Uygur और Uigur के रुप में प्रयोग किया जाता है.) उयघूर मुस्लिम कजाखस्तान, किर्गीस्तान, उजबेकिस्तान में अधिक संख्या में और मंगोलिया, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, रुस में कुछ संख्या में हैं लेकिन मुख्य रुप से अब यह समुदाय चीन की राजधानी बीजिंग और शंघाई में ही हैं.इतिहास की नजर से देखें तो तुर्की भाषा बोलने उयघूर मध्य एशिया के एल्टे माउंटेन, गोक्टर्स के आस-पास रहने वाले थे। पिछले दो हजार सालों में उयघूर मुस्लिमों ने काफी उतार-चढ़ाव देखे हैं। कभी यहां राज करने वाले उयघूर आज दमन सहने पर मजबूर हैं।
* आतंकवादी बताता रहा है चीन
प्राचीनकाल से विस्तारवादी प्रवृत्तिवाला चीन कभी उयघूर मुस्लिमों पर विश्वास नहीं कर सका। चीन उन्हें हमेशा से ही पृथकतावादी और उग्रवादी बताया जाता रहा और इसके नाम पर उनका निरंतर दमन किया गया। ताजा विवाद के बाद यह तो तय है कि उयघूर मुस्लिमों में चीनी शासकों के प्रति नफरत दो गुनी बढ़ चुकी होगी। उनका संघर्ष और विरोध इस तरह के दमन से दम नहीं तोडऩे वाला। उयघूर दशकों से चीन से स्वतंत्रता के लिए आंदोलन कर रहे हैं। उनका धैर्य जब टूटने लगता और हताशा बढ़ती है तो वे हिंसा का सहारा लेने लगते हैं। लेकिन चीनी सरकार द्वारा बताया यह जाता रहा कि संदिग्ध उयघूर मुस्लिम आतंकवादियों की धरपकड़ के लिए इस तरह की कार्रवाई की जाती है। इन आरोपों को गलत नहीं कहा जा सकता कि चीन की जेलों और गुप्त यातनागृहों में सैकड़ों उयघूर मुस्लिम फंसे हुए हैं। पिछले साल बीजिंग ओलंपिक के दौरान चीन में हुए भीषण विस्फोट में डेढ़ दर्जन पुलिसकर्मी मारे गये थे। तब इसे सरकार ने उयघूर आतंकवादियों की करतूत करार दिया था और कई लोगों को गिरफ्तार कर जेल में ठूंस दिया गया था
* थोपा गया सांस्कृतिक औपनिवेशवाद
सामान्य रूप से देखें तो उयघूर व चीन के संबंध खासे उलझे नजर आते हैं। शिनजियांग चीन के बनिस्बत पाकिस्तान, उज्बेकिस्तान व कजाखिस्तान के कहीं ज्यादा करीब दिखाई देता है। काशगर की सड़कों पर घूमते हुए ऐसा नही लगता कि यह चीन का कोई इलाका है। चीन लोगों की राय में उयघूरों पर विश्वास नहीं किया जा सकता। वे जेबकतरे हैं और ऐसे ही कामों में लिप्त रहते हैं। दोनों की संस्कृति, आचार-विचार, धर्म व राजनीति सोच में काफी भिन्नता है। यही कारण है कि उयघूर समुदाय इसे थोपा गया सांस्कृतिक औपनिवेशवाद करार देते हैं जबकि चीनी सरकार का कहना है कि अलगाववादी उयघूर इस्लामिक कंट्टरपंथी हैं जिनका मकसद शिनझियांग को चीन से आजाद कराना है। जानकारों की राय में 1989 में थ्येनआनमन नरसंहार के बाद चीन में यह सबसे बड़ी घटना है। वर्तमान में उरुम्की में हानवंशी चीनियों का दबदबा बढ़ रहा है। शिनझियांग में करीब एक करोड़ उयघूर रहते हैं और अधिकांश चीन से आजादी चाहते हैं। उनके मुताबिक यहां रह रही हानवंशियों की एक बड़ी आबादी उन्हें बाहर खदेड़ने पर तुली है। मानवाधिकार समूहों व उयघूर कार्यकर्ताओं का कहना है कि सरकार हर चीज को बढ़ा-चढ़ा कर बता रही है ताकि अपनी दमनात्मक कार्रवाई को सही ठहरा सके।


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Monday, July 6, 2009

युगपुरुष बने फेडरर


स्विट्जरलैंड के रॉजर फेडरर ने रविवार को मैराथन मुकाबले में अमेरिका के ऐंडी रॉडिक को हराकर विंबलडन टूर्नामंट जीत लिया। फेडरर का यह 15वां ग्रैंड स्लैम खिताब रहा। इस जीत के साथ ही फेडरर ने सबसे ज्यादा ग्रैंड स्लैम जीतने का इतिहास रच दिया। पहले यह रेकॉर्ड अमेरीका के पीट सैम्प्रास के नाम था। उन्होंने अपने करियर के दौरान 14 ग्रैंड स्लैम जीते थे। फेडरर रेकॉर्ड 20वीं बार किसी भी ग्रैंड स्लैम के फाइनल में पहुंचे थे। इस रिकॉर्ड के साथ युगपुरुष बने फेडरर के कुछ विशेष क्षणों पर एक नजर
15-14 का भाग्यशाली संयोग
टेनिस के युगपुरुष बन चुके रोजर फेडरर के लिए उनके ग्रैंड स्लेम रिकार्ड की संख्या ही अंततः भाग्यशाली रही। फेडरर को अमेरिका के पीट सम्प्रास का 14 ग्रैंड स्लेम खिताबों का विश्वरिकार्ड तोड़ने के लिए 15 वें खिताब की जरूरत थी। फेडरर और अमेरिका के एंडी रोडिक के बीच खिताबी मुकाबला जब पांचवें और निर्णायक सेट में प्रवेश कर गया तो किसी को उम्मीद नहीं थी कि यह इतना लंबा खिचेगा। इस सेट में 6-6 की बराबरी के बाद नियमानुसार लगातार दो गेम जीतने वाले खिलाड़ी को ही विजेता बनना था। दोनों के बीच मुकाबला गेम दर गेम आगे बढते हुए 14-14 की बराबरी पर पहुंचा। फेडरर को एक सर्विस ब्रेक की तलाश थी जो वह पूरे मैच में अब तक हासिल नहीं कर पाए थे। उन्होंने 29 वें गेम में अपनी सर्विस बरकरार रखते हुए 15-14 की बढ़त बनाई। अंततः यही संख्या उनके लिए भाग्यशाली साबित हुई और अगले गेम में उन्हें वह ब्रेक मिल गया जिसकी उन्हें तलाश थी।
साक्षी बने सम्प्रास- पीट सम्प्रास विंबलडन में अपने ही रिकार्ड टूटने के साक्षी बने। वर्ष 2002 में दूसरे दौर में विंबलडन से बाहर होने के बाद सम्प्रास फिर कभी विंबलडन में नहीं लौटे थे। लेकिन लगता है कि जैसे इसबार उन्हें यकीन था कि उनका रिकार्ड जरूर टूटेगा और वह फेडरर को यह इतिहास बनाते देखने के लिए विंबलडन के रायल बाक्स में मौजूद थे। संप्रास ने फेडरर की कामयाबी के बाद खुद उन्हें बधाई भी दी। संप्रास जब फेडरर को बधाई दे रहे थे तो उनके साथ महान राड लेवर और ब्योर्न बोर्ग भी मौजूद थे।
76 गेम के बाद मिला ब्रेक -रोडिक के खिलाफ मैच में फेडरर को चार घंटे 15 मिनट के बाद जाकर मैच का पहला ब्रेक नसीब हुआ। इस एक अदद ब्रेक के लिए फेडरर को 76 गेम तक इंतजार करना पड़। फेडरर के शानदार करिअर में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ होगा कि उन्हें एक ब्रेक के लिए इतना लंबा इंतजार करना पडा हो।
कोर्ट के रिकॉर्ड से बहुत दूर - फेडरर ने बेशक सम्प्रास का रिकार्ड तोड दिया हो लेकिन यदि महिला चैंपियनों से तुलना की जाए तो वह आस्ट्रेलिया की मारग्रेट कोर्ट के 24 ग्रैंड स्लेम रिकार्ड से काफी दूर हैं। कोर्ट ने अपने करिअर में 11 आस्ट्रेलियन, पांच फ्रेंच, तीन विंबलडन और पांच यूएस ओपन खिताब जीते थे। जर्मनी की स्टेफी ग्राफ 22 खिताबों के साथ दूसरे, अमेरिका की हेलेन मूडी 19 खिताबों के साथ तीसरे और अमेरिका की ही क्रिस एवर्ट तथा मार्टिना नवरातिलोवा 18-18 खिताबों के साथ संयुक्त चौथे नंबर पर हैं।
रिकार्डों के नाम रहा विंबलडन का फाइनल
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इस मैच में जीतकर स्विटजरलैंड के फेडरर ने 15 ग्रैंड स्लेम जीतने वाले पहले खिलाड़ी बनने का गौरव हासिल कर लिया।
- फेडरर और रोडिक के बीच खेला गया फाइनल मैच गेम के हिसाब से टेनिस इतिहास का सबसे लंबा मैच था। इसके कुल पांच सेटों में 77 गेम खेले गए। पिछला रिकार्ड वर्ष 1927 में आस्ट्रेलियन चैंपियनशिप का था जिसमें 71 गेम खेले गए थे। इसके अलावा पिछले वर्ष फेडरर और नडाल के बीच खेले गए विंबलडन के फाइनल मुकाबले में 62 गेमों में फैसला हुआ था।
- फेडरर और रोडिक के बीच खेला गया पांचवां सेट पुरूषों के ग्रैंड स्लेम फाइनल मुकाबले का अब तक का सबसे लंबा सेट था। फेडरर ने इस सेट के अंतिम गेम को 16-14 से जीता1 इससे पहले का रिकार्ड 11-9 का था जो वर्ष 1927 में फ्रेंच ओपन में बना था।
- फाइनल के पांचवे सेट में सबसे ज्यादा गेम खेले जाने का भी रिकार्ड बना। इस सेट में कुल 30 गेम खेले गए जबकि पिछला रिकार्ड 24 गेम का था।
- फेडरर ने इस मुकाबले में सबसे ज्यादा एस भी लगाए। उन्होंने इस फाइनल मैच में कुल 50 एस लगाए। हालांकि वह इवा कार्लोविक के विंबलडन के 51 एस के रिकार्ड से एक एस पीछे रह गए। फेडरर का पिछला रिकार्ड 39 एस का था। उन्होंने वर्ष 2008 के आस्ट्रेलियन ओपन में जांको तिपसेरोव के खिलाफ 39 एस लगाए थे।


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Friday, July 3, 2009

किराया वही, नॉन स्टॉप चलेगी ट्रेन


रेल बजट 2009 -
रेल मंत्री ममता बनर्जी ने आज संसद में पेश रेल बजट में पैसिंजर्स पर खूब ' ममता ' बरसाई। गरीबों के लिए जहां 25 रुपये का मंथली पास जैसी स्कीम शुरू की गई है। वहीं ' तुरंत ' नाम से 12 नॉन स्टॉप ट्रेनें शुरू की गई हैं। इसके साथ ही किसी भी क्लास के यात्री किराए में कोई बढ़ोतरी नहीं की गई है। बजट पेश करते हुए रेल मंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि आम आदमी को विकास में उसका हिस्सा जरूर मिलना चाहिए। उन्होंने कहा कि उनके रेल बजट में आम आदमी के हितों का ख्याल रखा जाएगा। रोजगार के मौके देना रेलवे की प्राथमिकता होगी।
किसी भी क्लास के यात्री किराए में कोई बढ़ोतरी नहीं की गई है। तत्काल कोटे में सीटें कम की जाएंगी। तत्काल स्कीम अब 5 की बजाय दो दिन के लिए लागू होगी।

नई नॉन स्टॉप पॉइंट टु पॉइंट ट्रेन सेवा ' तुरंत ' ( एसी , नॉन एसी ) का एलान। नई दिल्ली - जम्मू तवी , हावड़ा - मुंबई , मुंबई - पुणे , दिल्ली - इलाहाबाद , दिल्ली - शियालदाह , कोलकाता - अमृतसर , भुवनेश्वर - दिल्ली , एर्नाकुलम - दिल्ली , मुंबई - अहमदाबाद , हावड़ा - दिल्ली , लखनऊ - मुंबई आदि के लिए 12 नॉन स्टॉप ट्रेनें।

- ममता ने इज्जत स्कीम की घोषणा गरीबों , 1500 रुपये से काम आमदनी वालों , गैर संगठित क्षेत्र में काम करने वालों के लिए 25 रुपये में मंथली पास। इस पर वे 100 किलोमीटर तक की यात्रा कर सकेंगे। मान्यता प्राप्त पत्रकारों के लिए कंसेशन 30 फीसदी से बढ़ाकर 50 फीसदी। मदरसों के छात्रों को भी मिलेगी छूट।

- दिल्ली से चेन्नै के बीच सुपर फास्ट पार्सल सर्विस शुरू की जाएगी।
- सैम पित्रोदा की देखरेख में रेलवे ऑप्टिकल फाइबर केबल नेटवर्क पर काम तेज होगा। मालगाड़ी के 18000 डिब्बे खरीदे जाएंगे। रायबरेली में कोच फैक्ट्री का काम तेज होगा। बंगाल के काचरपाड़ा में नई कोच फैक्ट्री बनाई जाएगी।
- रेलवे कर्मचारियों के लिए 6650 मकान बनाए जाएंगे। रेलवे की जमीन पर 7 नर्सिंग कॉलिज भी बनाए जाएंगे।
- रेलवे रिक्रूटमंट बोर्ड रेलवे की भर्ती पॉलिसी पर विचार करेगी। पिछड़े और गरीब तबके के लोगों का ध्यान रखा जाएगा।
- सुरक्षा पर ज्यादा जोर रहेगा। कमांडो बटालियन बनाई जाएगी। महिलाओं की सुरक्षा पर ज्यादा ध्यान दिया जाएगा। ट्रेनों में महिला कमांडो तैनात की जाएंगी।
- इंटरसिटी ट्रेनों में डबल डेकर AC डिब्बे लगाए जाएंगे। 1000 और स्टेशनों पर रिजर्वेशन की सुविधा बढ़ाई जाएगी।
-50 स्टेशनों को विश्व स्तर का बनाया जाएगा। इसमें मुंबई , पुणे , नागपुर , हावड़ा , सियालदाह , नई दिल्ली , लखनऊ , आगरा और मथुरा स्टेशन शामिल होंगे।
-375 मॉडल स्टेशन बनाए जाएंगे। इनमें एटीएम समेत सभी सुविधाएं मुहैया करवाई जाएंगी।
-5000 डाकघरों से रेल टिकिट खरीदे जा सकेंगे। लंबी दूरी की गाड़ियों में डॉक्टर तैनात किए जाएंगे। रेल टिकिट बिक्री के लिए 50 मोबाइल वैन शुरू की जाएंगी।
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57 नई ट्रेनों का तोहफा
विशाखपत्नम-सिकंदराबाद-मुंबई सुपरफास्ट (सप्ताह में दो दिन)
श्रीगंगानगर-दिल्ली-नांदेड़ सुपरफास्ट (साप्ताहिक)
न्यू जलपाईगुड़ी-सियालदाह सुपरफास्ट (सप्ताह में तीन दिन)
बेंगलूरू-हुबली-सोलापुर सुपरफास्ट (सप्ताह में तीन दिन)
हावड़ा-बेंगलूरू सुपरफास्ट (साप्ताहिक)
पुणे-दौंद-सोलापुर सुपरफास्ट (प्रतिदिन)
रांची-हावड़ा (सप्ताह में 6 दिन)
कामाख्या-पुरी एक्सप्रेस (साप्ताहिक)
जबलपुर-अंबिकापुर एक्सप्रेस (सप्ताह में तीन दिन)
गांधीधाम-हावड़ा सुपरफास्ट (साप्ताहिक)
दिल्ली-सादुलपुर एक्सप्रेस (सप्ताह में तीन दिन)
अजमेर-भोपाल एक्सप्रेस (प्रतिदिन)
विलासपुर-तिरूवनंतपुरम सुपरफास्ट (साप्ताहिक)
मुंबई-कारवाड़ सुपरफास्ट (सप्ताह में तीन दिन)
दुर्ग-जयपुर एक्सप्रेस (साप्ताहिक)
डिब्रुगढ़ टाउन-चंडीगढ़ एक्सप्रेस (साप्ताहिक)
दिल्ली-फरक्का एक्सप्रेस (सप्ताह में दो दिन)
हजरत निजामुद्दीन-बेंगलूरू राजधानी एक्सप्रेस (सप्ताह में तीन दिन)
न्यू जलपाईगुड़ी-दिल्ली एक्सप्रेस वाया बरौनी (सप्ताह में दो दिन)
मुंबई-वाराणसी सुपरफास्ट (प्रतिदिन)
मैसूर-यशवंतपुर एक्सप्रेस (प्रतिदिन)
कोरापुट-राऊरकेला एक्सप्रेस (प्रतिदिन)
आगरा-अजमेर इंटरसिटी सुपरफास्ट (प्रतिदिन)
मुंबई-जोधपुर-बीकानेर सुपरफास्ट (सप्ताह में दो दिन)
आगरा-लखनऊ जंक्शन इंटरसिटी (प्रतिदिन)
हापा-तिरूनवेल्ली सुपरफास्ट (सप्ताह में दो दिन)
ग्वालियर-भोपाल इंटरसिटी (सप्ताह में 5 दिन)
कन्याकुमारी-रामेश्वरम एक्सप्रेस (सप्ताह में तीन दिन)
हावड़ा-हरिद्वार सुपरफास्ट (सप्ताह में 5 दिन)
वाराणसी-जम्मूतवी सुपरफास्ट (प्रतिदिन)
गोरखपुर-मुंबई सुपरफास्ट (प्रतिदिन)
नई दिल्ली-गुवाहाटी राजधानी एक्सप्रेस (साप्ताहिक)
बीरवाल-मुंबई लिंक सर्विस (प्रतिदिन)
रांची-पटना जनशताब्दी एक्सप्रेस (प्रतिदिन)
झांसी-छिंदवाड़ा एक्सप्रेस (सप्ताह में दो दिन)
मुंबई-जोधपुर एक्सप्रेस (साप्ताहिक)
जमालपुर-गया पैसेंजर (प्रतिदिन)
झाझा-पटना एमईएमयू (प्रतिदिन)
कानपुर-नई दिल्ली शताब्दी एक्सप्रेस (सप्ताह में 6 दिन)
भोपाल-लखनऊ-प्रतापगढ़ सुपरफास्ट (साप्ताहिक)
लखनऊ-रायबरेली-बेंगलूरू सुपरफास्ट (साप्ताहिक)
शिमोगा-बेंगलूरू इंटरसिटी एक्सप्रेस (प्रतिदिन)
मदुरै-चेन्नई (सप्ताह में दो दिन)
गुवाहाटी-न्यू कूचविहार एक्सप्रेस इंटरसिटी (प्रतिदिन)
बल्लूरघाट-न्यू जलपाईगुड़ी एक्सप्रेस (प्रतिदिन)
अलीपुरद्वार-न्यू जलपाईगुड़ी एक्सप्रेस इंटरसिटी (प्रतिदिन)
धरमनगर-अगरतल्ला फास्ट पैसेंजर (प्रतिदिन)
रेवाड़ी-फुलेरा पैसेंजर (प्रतिदिन)
शोरानूर-नीलामबूर रोड पैसेंजर (प्रतिदिन)
कोयम्बटूर-शोरानूर पैसेंजर (प्रतिदिन)
मथुरा-कासगंज पैसेंजर (प्रतिदिन)
फरक्का-कटवा-अजीमगंज-नवद्वीपधाम एक्सप्रेस (प्रतिदिन)
बेंगलूरू-कूचुवेली सुपरफास्ट (साप्ताहिक)
कोलकाता-रामपुरहाट एक्सप्रेस (प्रतिदिन)
न्यू जलपाईगुड़ी-दीघा एक्सप्रेस (साप्ताहिक)
पुरूलिया-हावड़ा एक्सप्रेस (सप्ताह में दो दिन)
कोलकाता-बीकानेर एक्सप्रेस (साप्ताहिक)
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12 नॉन स्टॉप ट्रेनों की सौगात
1 नई दिल्ली-जम्मूतवी (प्रतिदिन)
2 हावड़ा-मुंबई (सप्ताह में दो दिन)
3 मुंबई-अहमदाबाद (सप्ताह में तीन दिन)
4 चेन्नई-दिल्ली (सप्ताह में दो दिन)
5 नई दिल्ली-लखनऊ (सप्ताह में तीन दिन)
6 दिल्ली-पुणे (सप्ताह में दो दिन)
7 हावड़ा-दिल्ली (सप्ताह में दो दिन)
8 नई दिल्ली-इलाहाबाद (सप्ताह में तीन दिन)
9 सियालदह-नई दिल्ली (सप्ताह में दो दिन)
10 कोलकाता-अमृतसर (सप्ताह में दो दिन)
11 भुवनेश्वर-दिल्ली (साप्ताहिक)
12। एर्नाकुलम-दिल्ली (साप्ताहिक)
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27 ट्रेनों का विस्तार
1. बेंगलुरू-मैंगलोर का कन्नूर तक विस्तार
2. अंडाल-सैंथिया का रामपुर हाट तक
3. झांसी-बैरकपुर का कोलकाता तक
4. मदुरै-जम्मूतवी का तिरूनलवेल्ली तक
5. हैदराबाद-उस्मानाबाद का पुणे तक
6. तिरूवनंतपुरम-एर्नाकुलम का कोझीकोड तक
7. मैसूर-तिरूपति का चामराज नगर तक
8. सियालदाह-नई दिल्ली का अमृतसर तक
9. रांची-अलीपुरद्वार का गुवाहाटी तक
10. पोरबंदर-बापूधाम-मोतीहारी का मुजफ्फरपुर तक
11. जबलपुर-भोपाल एक्सप्रेस का इंदौर तक
12. एर्नाकुलम-तिरूचरापल्ली का नागौर तक
13. हावड़ा-आगरा कैंट चम्बल एक्सप्रेस का मथुरा तक
14. कोलकाता-मुर्शिदाबाद हजारद्वारी एक्सप्रेस का लालगोला तक
15. मुंबई-जयपुर एक्सप्रेस का दिल्ली तक
16. गोरखपुर-भिवानी का हिसार तक
17. मैंगलोर-चेन्नई का पुड्डुचेरी तक
18. नागपुर-गया दीक्षाभूमि एक्सप्रेस टु छत्रपति शाहूजी महाराज टर्मिनल कोल्हापुर तक एक तरफ तथा धनबाद दूसरी तरफ
19. बंगलौर-हुबली इंटरसिटी का धारवाड़ तक
20. रायपुर-भुवनेश्वर का पुरी तक
21. पाराद्वीप-भुवनेश्वर का पुरी तक विस्तार
22. पुरी-किंडूझारगढ़ का बारबिल तक विस्तार
23. मुंबई-कानपुर उद्योगनगरी एक्सप्रेस का प्रतापगढ़ तक
24. प्रतापगढ़-रायबरेली पैसेंजर का लखनऊ तक
25. हावड़ा-भुवनेश्वर धौली एक्सप्रेस का पुरी तक
26. वाराणसी-लखनऊ का कानपुर तक
27. सियालदाह-जयपुर का अजमेर तक विस्तार
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Wednesday, July 1, 2009

"कहीं फिर न फैले नफरत की आग"


कॉमन मैन की चिंता

अंतत: 17 साल और 46 एक्सटेंशन (विस्तार) के बाद लिब्रहान आयोग ने अपनी रिपोर्ट आखिरकार सरकार को सौंप ही दी। हम तो भूल ही चुके थे कि बाबरी विध्वंस और अयोध्या राम मंदिर जैसा कुछ बवाल भी इस देश में हुआ था। लेकिन लिब्रहान ने उसकी याद दिला दी और अयोध्या का जिन्न एक बार फिर बाहर आ गया. .....

छह दिसंबर 1992, यानि पूरे देश को धार्मिक और राजनीतिक नफरत की आग में झोंकने वाला जिन्न। वैसे यह जिन्न इस बार जून के अंतिम दिवस पर बाहर निकला और सरकार के हाथों में समा गया और संसद में पेश होने के बाद अपना असर दिखाने की तैयारी कर रहा है. वैसे इस रिपोर्ट को 31 मार्च से पूर्व ही आने की उम्मीद थी लेकिन सर पर खड़े चुनाव ने कांग्रेसी रणनीतिकारों को चिंतन में डाल दिया. उन्हें भय था कि कहीं रिपोर्ट आ गयी और इसका लाभ भाजपा को मिल गया तो ......। यही कारण है कि लिब्रहान को तीन और अधिक महीने दे दिये गये. अब यह समय लीपापोती/दोषारोपण के लिए रहा हो या किसी और कारण से इसका पता तो तब चलेगा जब यह संसद में पेश होगा लेकिन,

यह भारत है और यहां कत्ल करने वाला तुरंत हिरासत में ले लिया जाता है लेकिन हजारो लोगों की जान लेने वाला सत्ता में बैठकर देश चलाता है। अपने आरोपों को आयोगों के हवाले कर देता है और फिर उसे अपनी अंगुलियों पर नचाता है. जिस देश का प्रधानमंत्री आयोग द्वारा दोषी ठहराया जाता है उस पर भी आरोप तभी तय होता है जब वह इस दुनिया से विदा ले लेता है. सामूहिक हत्याओं के ऐसे आरोपी बड़े नेता कहे जाते हैं और अपने स्वार्थ के लिए हत्या करने वाले शिबू सोरेन जैसे लोग सजा पाने के बाद जमानत पर छूटते हैं और फिर मुख्यमंत्री तक बन जाते हैं.

अब इस रिपोर्ट के पेश होने के बाद कॉमन मैन इस चिंता में डूब गया होगा कि इन 17 सालों में विवादों/धर्मों के पुल के नीचे से इतना पानी गुजर चुका था कि बाबरी विध्वंस जैसी चीजें जेहन से उतर चुकी थीं, अब एक फिर मुंह बाये उठ खड़ी हो गयी। राजनेताओं को अभी यह नहीं पता कि इस रिपोर्ट में क्या है, कौन दोषी है और किसको बचाये जाने का प्रयास किया गया है और भी न जाने क्या-क्या.........? लेकिन बयानों का सिलसिला कुछ ऐसा चला कि कॉमन मैन टेंशन में आ गया. ऐसा न हो कहीं फिर से देश नफरत की आग में न झोंक दिया जाय..........,

किसी ने कहा "मैं फांसी पर चढ़ने के लिए तैयार हूं" तो किसी को बाबरी विध्वंस पर गर्व होता है। इन आलोचनाओं और बिना कुछ तथ्य सामने आये ही बौरा-बौरा कर गर्व की अनुभूति और फांसी पर चढ़ने में डर नहीं जैसा बयान देने का मकसद इतना भर है कि इस मुद्दे को इतना उछाल दिया जाए कि उनकी ओर उठने वाली अंगुलियों का रूख खुद ब खुद दूसरी ओर मुड़ जाए। अयोध्या के नाम पर इस देश में पहले ही काफी नफरत बोई जा चुकी है। अब इस नाम पर नफरत के किसी नए अध्याय की जरूरत इस महादेश को बिल्कुल भी नहीं है। आयोग की रिपोर्ट पर जो कुछ भी दो वह संविधान के दायरे में हो, कानून के दायरे में हो। रिपोर्ट को लेकर राजनीतिक रोटियां सेकने की इजाजत किसी को भी नहीं होनी चाहिए।

और वैसे भी, आप फांसी पर चढ़ें या आपको गर्व हो, इससे आम आदमी को क्या, उसे तो आप उसकी जिंदगी जीने के लिए स्वतंत्र छोड़ दीजिए....... आप बेशक फांसी पर चढ़ जायें लेकिन कॉमन मैन को नफरत की आग में तो मत धकेलिए.........., आपको गर्व होता है तो हो, कॉमन मैन को तो इस बात पर गर्व होता है कि एक परंपरावादी परिवार की मुस्लिम लड़की संस्कृत में टॉप करती है ( केरल के कोल्लम के सस्थामकोट्टाह में देवासोम बोर्ड के एक कॉलेज की 21 साल की छात्रा रहमत का कहना है कि संस्कृत और वेदांत हमारी राष्ट्रीय संस्कृति का प्रतीक हैं।), क्या हम देश की उपलब्धियों पर गर्व नहीं कर सकते........ या फिर हमें कॉमन मैन होने का खामियाजा भुगतना पड़ेगा.........।

हमारे नेताओं को क्या फर्क पड़ता है कि कलुआ भूखमरी का शिकार हो सिधार गया, दोपहर भोजन योजना में देश के भविष्य को खिलाये जाने वाले खाने में छिपकली मिलता हो, पानी के लिए करोड़ो फूंक दिये जाने के बाद भी पानी के लिए लोग खून के प्यासे हो जायें......... उन्हें चिंता है तो इस बात की कि वह किस तरह से किसी भी मुद्दे का फायदा उठा सकें और राजनीतिक गोटियां सेंक सकें, देश जाये चूल्हे भाड़ में और देश कॉमन मैन का ही तो है........... इन नेताओं का नहीं........... सो कॉमन मैन जाये चूल्हे भाड़ में...........,

लेकिन कॉमन मैन तो यही चाहता है कि इस रिपोर्ट के बाद हमारे आका उसे फिर से नफरत की आग में न झोंक दें..........


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