Wednesday, July 1, 2009

"कहीं फिर न फैले नफरत की आग"


कॉमन मैन की चिंता

अंतत: 17 साल और 46 एक्सटेंशन (विस्तार) के बाद लिब्रहान आयोग ने अपनी रिपोर्ट आखिरकार सरकार को सौंप ही दी। हम तो भूल ही चुके थे कि बाबरी विध्वंस और अयोध्या राम मंदिर जैसा कुछ बवाल भी इस देश में हुआ था। लेकिन लिब्रहान ने उसकी याद दिला दी और अयोध्या का जिन्न एक बार फिर बाहर आ गया. .....

छह दिसंबर 1992, यानि पूरे देश को धार्मिक और राजनीतिक नफरत की आग में झोंकने वाला जिन्न। वैसे यह जिन्न इस बार जून के अंतिम दिवस पर बाहर निकला और सरकार के हाथों में समा गया और संसद में पेश होने के बाद अपना असर दिखाने की तैयारी कर रहा है. वैसे इस रिपोर्ट को 31 मार्च से पूर्व ही आने की उम्मीद थी लेकिन सर पर खड़े चुनाव ने कांग्रेसी रणनीतिकारों को चिंतन में डाल दिया. उन्हें भय था कि कहीं रिपोर्ट आ गयी और इसका लाभ भाजपा को मिल गया तो ......। यही कारण है कि लिब्रहान को तीन और अधिक महीने दे दिये गये. अब यह समय लीपापोती/दोषारोपण के लिए रहा हो या किसी और कारण से इसका पता तो तब चलेगा जब यह संसद में पेश होगा लेकिन,

यह भारत है और यहां कत्ल करने वाला तुरंत हिरासत में ले लिया जाता है लेकिन हजारो लोगों की जान लेने वाला सत्ता में बैठकर देश चलाता है। अपने आरोपों को आयोगों के हवाले कर देता है और फिर उसे अपनी अंगुलियों पर नचाता है. जिस देश का प्रधानमंत्री आयोग द्वारा दोषी ठहराया जाता है उस पर भी आरोप तभी तय होता है जब वह इस दुनिया से विदा ले लेता है. सामूहिक हत्याओं के ऐसे आरोपी बड़े नेता कहे जाते हैं और अपने स्वार्थ के लिए हत्या करने वाले शिबू सोरेन जैसे लोग सजा पाने के बाद जमानत पर छूटते हैं और फिर मुख्यमंत्री तक बन जाते हैं.

अब इस रिपोर्ट के पेश होने के बाद कॉमन मैन इस चिंता में डूब गया होगा कि इन 17 सालों में विवादों/धर्मों के पुल के नीचे से इतना पानी गुजर चुका था कि बाबरी विध्वंस जैसी चीजें जेहन से उतर चुकी थीं, अब एक फिर मुंह बाये उठ खड़ी हो गयी। राजनेताओं को अभी यह नहीं पता कि इस रिपोर्ट में क्या है, कौन दोषी है और किसको बचाये जाने का प्रयास किया गया है और भी न जाने क्या-क्या.........? लेकिन बयानों का सिलसिला कुछ ऐसा चला कि कॉमन मैन टेंशन में आ गया. ऐसा न हो कहीं फिर से देश नफरत की आग में न झोंक दिया जाय..........,

किसी ने कहा "मैं फांसी पर चढ़ने के लिए तैयार हूं" तो किसी को बाबरी विध्वंस पर गर्व होता है। इन आलोचनाओं और बिना कुछ तथ्य सामने आये ही बौरा-बौरा कर गर्व की अनुभूति और फांसी पर चढ़ने में डर नहीं जैसा बयान देने का मकसद इतना भर है कि इस मुद्दे को इतना उछाल दिया जाए कि उनकी ओर उठने वाली अंगुलियों का रूख खुद ब खुद दूसरी ओर मुड़ जाए। अयोध्या के नाम पर इस देश में पहले ही काफी नफरत बोई जा चुकी है। अब इस नाम पर नफरत के किसी नए अध्याय की जरूरत इस महादेश को बिल्कुल भी नहीं है। आयोग की रिपोर्ट पर जो कुछ भी दो वह संविधान के दायरे में हो, कानून के दायरे में हो। रिपोर्ट को लेकर राजनीतिक रोटियां सेकने की इजाजत किसी को भी नहीं होनी चाहिए।

और वैसे भी, आप फांसी पर चढ़ें या आपको गर्व हो, इससे आम आदमी को क्या, उसे तो आप उसकी जिंदगी जीने के लिए स्वतंत्र छोड़ दीजिए....... आप बेशक फांसी पर चढ़ जायें लेकिन कॉमन मैन को नफरत की आग में तो मत धकेलिए.........., आपको गर्व होता है तो हो, कॉमन मैन को तो इस बात पर गर्व होता है कि एक परंपरावादी परिवार की मुस्लिम लड़की संस्कृत में टॉप करती है ( केरल के कोल्लम के सस्थामकोट्टाह में देवासोम बोर्ड के एक कॉलेज की 21 साल की छात्रा रहमत का कहना है कि संस्कृत और वेदांत हमारी राष्ट्रीय संस्कृति का प्रतीक हैं।), क्या हम देश की उपलब्धियों पर गर्व नहीं कर सकते........ या फिर हमें कॉमन मैन होने का खामियाजा भुगतना पड़ेगा.........।

हमारे नेताओं को क्या फर्क पड़ता है कि कलुआ भूखमरी का शिकार हो सिधार गया, दोपहर भोजन योजना में देश के भविष्य को खिलाये जाने वाले खाने में छिपकली मिलता हो, पानी के लिए करोड़ो फूंक दिये जाने के बाद भी पानी के लिए लोग खून के प्यासे हो जायें......... उन्हें चिंता है तो इस बात की कि वह किस तरह से किसी भी मुद्दे का फायदा उठा सकें और राजनीतिक गोटियां सेंक सकें, देश जाये चूल्हे भाड़ में और देश कॉमन मैन का ही तो है........... इन नेताओं का नहीं........... सो कॉमन मैन जाये चूल्हे भाड़ में...........,

लेकिन कॉमन मैन तो यही चाहता है कि इस रिपोर्ट के बाद हमारे आका उसे फिर से नफरत की आग में न झोंक दें..........

1 comment:

  1. aaj koun sunta hai comman man ki bat, chinta bhi to koi nahi karta


    anil, basti

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