Monday, June 22, 2009

शायद मेरी समझ जरा कमजोर है...

1) 21 जून को भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी सायना नेहवाल ने इंडोनेशियाई ओपन सुपर सीरीज बैडमिंटन टूर्नामेंट जीतकर इतिहास रचा। किसी भी सुपर सीरीज बैडमिंटन टूर्नामेंट में खिताब जीतने वाली पहली भारतीय बनीं।
2) 21 जून को ही पाकिस्तान ने श्रीलंका को हराकर ट्वेंटी-20 वर्ल्डकप का खिताब जीता और,
3) 21 जून को ही इंग्लैंड ने न्यूजीलैंड को हराकर ट्वेंटी-20 महिला वर्ल्डकप का खिताब अपने नाम किया।
दरअसल मेरी कोशिश यह ध्यान दिलाने की नहीं है कि 21 जून को खेल की कौन-कौन सी गतिविधियां रहीं, मेरी कोशिश तो कुछ और ही पहलू पर ध्यान दिलाने की है। रविवार को यह सभी खबरें किसी भी अन्य खबरों से अधिक महत्वपूर्ण रहीं और जैसी की उम्मीद थी सभी अखबारों ने इन खबरों को अपने पहले पन्ने पर जगह दी। खेल प्रेमी होने के बावजूद सोमवार को अखबारों में छपी इन खबरों को देखकर दिल बाग-बाग हो गया हो, ऐसा नहीं है। सभी अखबारों ने अपनी नीतियों और महत्व के हिसाब से ही इन खबरों को स्थान दिया होगा, ऐसा मेरा सोचना है। मैं गलत भी हो सकता हूं लेकिन भोपाल में होने के कारण भोपाल के अखबारों में छपी इन खबरों पर नजर डालें तो मन कुछ उदास सा हो गया।
यहां के कुछ अखबारों ने इन खबरों का जिस तरह से प्रस्तुतीकरण किया उससे मेरा खेलप्रेमी ह्रदय कुछ निराश सा हो गया। चूंकि सभी अखबार अपने देश के ही हैं और उसके पाठकों में भी लगभग सभी हिंदुस्तानी ही हैं ऐसे में खबर वह महत्वपूर्ण थी जिसमें भारतीय संदर्भ और उपलब्धि छिपी हुई थी। जी हां, यहां बात सायना नेहवाल की हो रही है। सायना की उपलब्धि किसी भी मायने में अन्य दो खबरों से कम नहीं थीं, बल्कि अधिक ही थीं। ऐसे में एक लीडिंग अखबार का पहले पन्ने पर पाक के चैंपियन बनने की खबर को अधिक कवरेज देना और सायना के सयाने प्रदर्शन को बेहद कम जगह देना सालने वाला रहा।
कहीं इसलिए तो नहीं कि सायना का यह प्रदर्शन क्रिकेट नहीं बैडमिंटन के लिए आया और व्यावसायिक नजरिए से बैडमिंटन क्रिकेट से कहीं अधिक पीछे है?
यही नहीं उक्त अखबार ने खेल पन्ने पर भी सायना को अन्य खबरों से कम स्पेस देकर खेल प्रेमियों को निराश ही किया। आखिर जिस उपलब्धि को प्रकाश पादुकोण और पी गोपीचंद के ऑल इंग्लैंड बैडमिंटन टूनार्मेंट की खिताबी जीत के बराबर माना जा रहा हो और जैसा किसी अन्य भारतीय ने पहले नहीं किया रहा हो, उसकी फोटो वर्ल्डकप लिए पाकिस्तान के शाहिद अफरीदी, यूनिस खान, शोएब मलिक से कम महत्वपूर्ण कैसे हो सकती है? मुझे समझ नहीं आया, संभवत: मेरी समझ जरा कमजोर है। एक अन्य अखबार ने भी ऐसा ही किया और बेहद निराशाजनक तरीके से, जिसमें सायना की खबर ढूंढने पर मिली और पाक जीत की खबर एकदम सामने ही नजर आई।अपनी इस निराशा के बीच एक अन्य अखबार ने पहले पन्ने का जो ले-आउट दिया, उसकी चर्चा न करुं तो शायद ज्यादती होगी. उक्त अखबार ने सायना की जो फोटो प्रकाशित की है उसमें वह तिरंगा लहरा रहीं हैं। एक खेलप्रेमी को वह फोटो बेहद आकर्षक लगी और उसको दिया गया उचित स्थान भी. इस अखबार ने भी पाक जीत की और इंग्लैंड की जीत की फोटो पहले पन्ने पर ही दी और बकायदा पैकेज बनाकर लेकिन उसमें गंभीरता दिखी। उसने सायना की तिरंगे वाली फोटो के बैकग्राउंड के रुप में पाक के चैंपियन बनने की खबर और इंग्लिश महिलाओं की जीत की खबर लगाई। इस फोटो से मेरे खेल मन को कुछ ऐसा संदेश मिला कि "सबसे आगे होंगे हिंदुस्तानी"
मुझे ऐसा लगता है कि जिस खिताब को जीतकर सायना ने देश को गौरवान्वित किया हो, वह खबर अन्य खबरों से छोटी कैसे हो सकती है. और यही वजह है कि विभिन्न अखबारों में प्रकाशित इन खबरों को देखकर जब मन विचलित हुआ तो अपने दिल की बात लिख दी. हालांकि लिखते समय मुझे बराबर यह लगता रहा कि मेरी समझ शायद कमजोर है, फिर भी लिखता गया...

1 comment:

  1. सायना की विजय बहुत गौरव की बात है। यदि हम सब खेलों को महत्व दें विशेषकर जीतने वाले खिलाड़ियों को बराबर मान दें तभी भारत खेलों में नाम कमाने के सपने देख सकता है।
    घुघूती बासूती

    ReplyDelete

आपकी टिप्पणी हमारे लिए बेहद खास है।
अत: टिप्पणीकर उत्साह बढ़ाते रहें।
आपको टिप्पणी के लिए अग्रिम धन्यवाद।