Wednesday, July 8, 2009

"उयघूर दमन" पर उतारु चीन

वैसे ऐसा बहुत कम होता है कि दुनिया भर में कहीं भी मुस्लिम समुदाय या व्यक्ति पर, गलत/सही कोई भी कार्रवाई हो, चाहे ऐसे मामलों में मुस्लिम समुदाय ही दोषी क्यों न हो, दुनिया भर के मुस्लिम देशों में विरोध की आवाज जरुर उठती रही है मगर चीन में "उयघूर" मुस्लिमों के दमन पर अभी तक किसी भी देश ने कोई बयान जारी नहीं किया है. फ्रांस की सरकार ने हाल ही में जब बुर्के को महिलाओं की गुलामी की निशानी बताकर उस पर प्रतिबंध लगा दिया था तो कई मुस्लिम देशों ने इसे अपनी स्वतंत्रता और तहजीब पर आघात मानकर इसके खिलाफ आवाज उठायी थी. फ्रांस सरकार का यह फैसला गलत था या सही यह तो बात की बात लेकिन इन देशों का बुर्के के पक्ष में उनकी तहजीब और स्वतंत्रता पर खतरा उत्पन्न होने की दलील जरा गले नहीं उतरी क्योंकि महिलाओं को बुर्का पहनने पर मजबूर करना भी तो उनकी स्वतंत्रता पर तुषारापात जैसा ही है. इस बात पर आश्चर्य होता है उयघूर मुस्लिमों पर हो रहे अत्याचार के विरुद्ध पश्चिमी देशों से आवाज उठ रही है लेकिन सारी दुनिया के मुसलमानों के हितों के लिए संघर्ष का दावा करने वाले ठेकेदार देश पाकिस्तान, ईरान और सउदी अरब की चीन के सामने घिग्घी बंधी हुई है। खैर, बात उयघूरों की
चीन के शिनझियांग प्रांत के उरुकमी में उयघूर मुस्लिमों और हान चीनियों के बीच पिछले कुछ दिनों की टकराव में सैकड़ों लोगों के मारे जाने के बीच मुस्लिम देशों की चुप्पी सालने वाली है। वैसे उयघूर मुस्लिमों के प्रति चीनी सरकार का यह दमनात्मक रवैया कोई पहली बार नहीं है। कई बार तो खबरों पर सरकारी नियंत्रण के चलते ऐसी खबरें बाहर नहीं आ पातीं. पिछले दो-तीन दिनों में शिंनझियांग के उरुकमी में उयघूर मुस्लिमों और हान चीनियों के बीच संघर्ष में पौने दो सौ उयघूर मुस्लिम मारे गये हैं। लगभग एक हजार घायल हैं। इस बीच शहर में कर्फ्यू लगा दिया गया है जिसका सीधा सा मतलब है कि उयघूरों के प्रति चीनी सरकार के रवैये में कोई अंतर आने वाला नहीं है. चीन की इस दमनात्मक नीति के खिलाफ उयघूर मुस्लिम विरोध का झंडा बुलंद किए हुए हैं. इन विरोध प्रदर्शनों की सारी कार्रवाई, विश्व उयघूर कांग्रेस की नेता रबिया कदीर द्वारा चलायी जा रही है. रबिया कदीर उयघूर की एक निर्वासित महिला व्यावसायी हैं और फ़िलहाल अमेरिका में हैं. सुश्री कदीर को चीन सरकार ने अलगाववादी कार्रवाइयों में संलिप्त रहने का आरोप लगा कर उन्हें कई सालों तक जेल में बंद रखा था. उयघूर अलगाववादी समूहों का कहना है कि लोगों का विरोध सरकारी नीतियों और आर्थिक लाभों पर हान चीनी एकाधिकार के खिलाफ़ है. लेकिन अपनी भौगोलिक सीमा बढ़ाने को लेकर अक्सर ही दादागिरी करने वाला चीन इसे हिंसा फैलने के तौर पर देख रही है. वैसे भी चीनी सरकार ने कभी उयघूर मुस्लिमों के प्रति सम्माजनक नजरिए से देखने की जरुरत नहीं समझी.
* क्यों हुआ संघर्ष
दरअसल संघर्ष की वास्तविक वजह सालों से चले आ रहे चीनियों व उयघूरों के परस्पर संबंधों में छिपी है। दूसरे शब्दों में कहें तो आज मूल चीनी हान समुदाय व उइगरों के बीच सौहा‌र्द्र का एक अंश भी नहीं बचा। उयघूर और हान चीनियों के बीच हुई हिंसा के पीछे की कहानी यह है कि पिछले महीने उरुमकाई शहर की एक स्थानीय वेबसाइट पर यह लिख दिया गया कि शिनझियांग प्रांत से आए हान मूल के लड़कों ने दो उयघूर लड़कियों के साथ बलात्कार किया है. इसके बाद ही हान और उयघूर समुदायों के बीच संघर्ष में दो लोगों की मौत हो गयी थी जबकि 118 घायल हो गये थे. उस घटना के बाद से दोनों ही समुदायों में बदले की आग सुलग रही थी जिसने बीते रविवार की रात दंगों का रुप ले लिया. दंगों की शुरुआत शिनझियांग की राजधानी उरुमकी में शुरु हुई. इसके बाद से ही हुए संघर्ष में 166 से अधिक लोग मारे गये. चूंकि इस इस संघर्ष के बाद चीनी सरकार ने इंटरनेट पर रोक लगा दी, इसलिए उसकी कार्रवाई पर संदेह होना लाजिमी है.
* संघर्ष के मूल में कुछ और तो नहीं
वैसे इस संघर्ष के मूल में कुछ दूसरी कहानी भी हो सकती है. उयघूर मुस्लिमों का आरोप है कि चीन की सरकार हान लोगों कों उरुमकाई शहर में जबरदस्ती बसा रही है. उरूमकाई शहर (शिनझियांग प्रांत) की बात करें तो यह चीन का मुस्लिम बहुल इलाका है। उरुमकाई की आबादी लगभग 23 लाख के करीब है जबकि शिनझियांग क्षेत्र में 80 लाख उयघूर मुस्लिम हैं. ये उयघूर समुदाय चीनी सरकार पर अपने अधिकारों के दमन का आरोप लगाते रहे हैं। शिनझियांग प्रांत मूल रुप से उयघूरों का ही क्षेत्र है लेकिन उसकी स्वायत्तता चीन को बर्दाश्त नहीं हुई और पूर्व में उसने इस क्षेत्र पर अपना कब्जा जमाने के बाद धीरे-धीरे चीन के मूल निवासियों हान को बसाना शुरु कर दिया. इससे न सिर्फ असंतुलन बढ़ा बल्कि इन दोनों समुदायों के बीच संघर्ष शुरु हो गया. इस संघर्ष के बहाने चीन सरकार को अपनी दमनात्मक नीति को आगे बढ़ाने का मौका और छूट मिल गयी. वैसे भी उसकी बढ़ती ताकत को देखकर कोई और देश उसके खिलाफ आवाज नहीं उठा पाता. उयघूर की स्थिति की तुलना चीन के कब्जे वाले तिब्बत से की जाती है। ऐतिहासिक संदर्भों का उल्लेख कर चीन जिस तरह तिब्बत को हड़पे बैठा है वैसा ही उसने शिंनझियांग प्रांत के तेल बहुल उस इलाके में किया जहां उयघूर मुसलमान अधिक हैं। लेकिन तिब्बत की तुलना में शिंनझियांग की परिस्थितियां थोड़ी भिन्न हैं। वैसे चीनी की नजर इस क्षेत्र पर इसलिए भी है क्योंकि यह तेल व खनिज भंडारों से समृद्ध है. शिनझियांग की सीमा मध्य एशिया के आठ देशों को छूती हैं, जिनमें भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान भी शामिल हैं। चीन की बढ़ती आर्थिक व राजनीतिक ताकत के प्रति उयघूर नाखुशी दर्शाते रहे हैं। उयघूरों व चीनियों के संबंध सदियों पहले सिल्क रूट से जुड़े हैं। इसी सिल्क मार्ग से पश्चिम एशिया, यूरोप व भारतीय उपमहाद्वीप में चीनी रेशम का व्यापार होता था। लेकिन बीते रविवार को शिनजियांग की राजधानी उरुमकी में भड़के दंगों में सारी सीमाएं टूट गईं।
* उयघूर कौन
इस्टर्न और सेंट्रल एशिया में निवास करने वाले उयघूर मूलत: तुर्की समुदाय से संबंध रखने वाले मुस्लिम हैं। वर्तमान की बात करें तो ये मुख्यरुप से चीन के शिनझियांग क्षेत्र में रहते हैं जिसे "शिनजियांग उयघूर ऑटोनॉमस रीजन" कहा जाता है. वैसे इसे इसके विवादास्पद "उयघूरस्तान/पूर्वी तुर्कीस्तान" के नाम से भी जाना जाता है. (अंग्रेजी में Uyghur, Uighur, Uygur और Uigur के रुप में प्रयोग किया जाता है.) उयघूर मुस्लिम कजाखस्तान, किर्गीस्तान, उजबेकिस्तान में अधिक संख्या में और मंगोलिया, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, रुस में कुछ संख्या में हैं लेकिन मुख्य रुप से अब यह समुदाय चीन की राजधानी बीजिंग और शंघाई में ही हैं.इतिहास की नजर से देखें तो तुर्की भाषा बोलने उयघूर मध्य एशिया के एल्टे माउंटेन, गोक्टर्स के आस-पास रहने वाले थे। पिछले दो हजार सालों में उयघूर मुस्लिमों ने काफी उतार-चढ़ाव देखे हैं। कभी यहां राज करने वाले उयघूर आज दमन सहने पर मजबूर हैं।
* आतंकवादी बताता रहा है चीन
प्राचीनकाल से विस्तारवादी प्रवृत्तिवाला चीन कभी उयघूर मुस्लिमों पर विश्वास नहीं कर सका। चीन उन्हें हमेशा से ही पृथकतावादी और उग्रवादी बताया जाता रहा और इसके नाम पर उनका निरंतर दमन किया गया। ताजा विवाद के बाद यह तो तय है कि उयघूर मुस्लिमों में चीनी शासकों के प्रति नफरत दो गुनी बढ़ चुकी होगी। उनका संघर्ष और विरोध इस तरह के दमन से दम नहीं तोडऩे वाला। उयघूर दशकों से चीन से स्वतंत्रता के लिए आंदोलन कर रहे हैं। उनका धैर्य जब टूटने लगता और हताशा बढ़ती है तो वे हिंसा का सहारा लेने लगते हैं। लेकिन चीनी सरकार द्वारा बताया यह जाता रहा कि संदिग्ध उयघूर मुस्लिम आतंकवादियों की धरपकड़ के लिए इस तरह की कार्रवाई की जाती है। इन आरोपों को गलत नहीं कहा जा सकता कि चीन की जेलों और गुप्त यातनागृहों में सैकड़ों उयघूर मुस्लिम फंसे हुए हैं। पिछले साल बीजिंग ओलंपिक के दौरान चीन में हुए भीषण विस्फोट में डेढ़ दर्जन पुलिसकर्मी मारे गये थे। तब इसे सरकार ने उयघूर आतंकवादियों की करतूत करार दिया था और कई लोगों को गिरफ्तार कर जेल में ठूंस दिया गया था
* थोपा गया सांस्कृतिक औपनिवेशवाद
सामान्य रूप से देखें तो उयघूर व चीन के संबंध खासे उलझे नजर आते हैं। शिनजियांग चीन के बनिस्बत पाकिस्तान, उज्बेकिस्तान व कजाखिस्तान के कहीं ज्यादा करीब दिखाई देता है। काशगर की सड़कों पर घूमते हुए ऐसा नही लगता कि यह चीन का कोई इलाका है। चीन लोगों की राय में उयघूरों पर विश्वास नहीं किया जा सकता। वे जेबकतरे हैं और ऐसे ही कामों में लिप्त रहते हैं। दोनों की संस्कृति, आचार-विचार, धर्म व राजनीति सोच में काफी भिन्नता है। यही कारण है कि उयघूर समुदाय इसे थोपा गया सांस्कृतिक औपनिवेशवाद करार देते हैं जबकि चीनी सरकार का कहना है कि अलगाववादी उयघूर इस्लामिक कंट्टरपंथी हैं जिनका मकसद शिनझियांग को चीन से आजाद कराना है। जानकारों की राय में 1989 में थ्येनआनमन नरसंहार के बाद चीन में यह सबसे बड़ी घटना है। वर्तमान में उरुम्की में हानवंशी चीनियों का दबदबा बढ़ रहा है। शिनझियांग में करीब एक करोड़ उयघूर रहते हैं और अधिकांश चीन से आजादी चाहते हैं। उनके मुताबिक यहां रह रही हानवंशियों की एक बड़ी आबादी उन्हें बाहर खदेड़ने पर तुली है। मानवाधिकार समूहों व उयघूर कार्यकर्ताओं का कहना है कि सरकार हर चीज को बढ़ा-चढ़ा कर बता रही है ताकि अपनी दमनात्मक कार्रवाई को सही ठहरा सके।

3 comments:

  1. मुझे आपके इस सुन्‍दर से ब्‍लाग को देखने का अवसर मिला, नाम के अनुरूप बहुत ही खूबसूरती के साथ आपने इन्‍हें प्रस्‍तुत किया आभार् !!

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  2. फ़्रांसीसी बुर्का काण्ड में अपने कपड़े तक फ़ाड़ लेने वाले सबसे तेज़ भारतीय चैनल कहाँ चले गये हैं भाई… उन्हें भेजो कवरेज के लिये…

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  3. शिनझियांग को अलग राज्य के रूप में भारत को तुरंत मान्यता दे देनी चाहिए। यह अरुणाचल की ईंट के लिए भारत के हाथ लगा पत्थर है।

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