पांच साल तक जनता के बीच से नदारद रहे वो चेहरे, अब एक बार फ़िर जननायक होने की दुहाई देंगे क्योंकि एक बार फ़िर चुनावी रणभेरी बज चुकी है। और मौका है एक बार फिर से बेवकूफ बनने का। साल-दर-साल ये कहानी दोहराई जा रही है। इस बार भी कोई नई नही है। बिसात वही होगी, कुछ मोहरे बदल दिए जाएंगे। बाकि का काम जनता ख़ुद बा ख़ुद कर लेगी। उसकी आंखों में फिर से पट्टी बंध जाएगी। सत्ता के जादूगर रात के अंधेरे में घिनौने खेल-खेल कर सुबह, दोपहर निपट सफेद चोला पहन कर जनता को अपने रहस्यमयी व्यक्तित्व से मूर्ख बना जायेंगे।
सत्ता बेईमानो के चंगुल में है और अपराधी ही नेता बने बैठे हैं। क्या कोई सत्ता से बेईमानों को बाहर करने का रास्ता दिखा पाएगा? या फिर हम चिरकाल तक अयोग्य नेताओं से आस बांधे रहेंगे। ईमानदारों के लिए सत्ता में जगह नहीं और बेइमानों के लिए जगह की कमी नहीं। हमारे देश में नेता रात के अंधेरे में रावण हैं और दिन के उजाले में मर्यादा पुरूषोतम राम होने का दावा करते हैं। दोहरा चरित्र आज हिंदुस्तान को ऐसे दोहराव पर ले आया है कि समझ नहीं आता कि हम भारतीय होने का शोक मनाएं या गर्व करें।
ऐसी राजनीती में जितना दोष नेताओं का है उससे कहीं ज्यादा जनता का। जनता के खून पसीने के अरबों रुपये ये नेता अब कुर्सी के लालच में फूंक डालेंगे ओर जनता को आस होगी विकास की। हमें ऐसे नेता को पहचानना होगा। वैसे यह भी बेहद मुश्किल है क्योंकि बेदाग प्रतिनिधि को कोई पार्टी पूछती ही नही है। बेइमानों के लिए कसीदे गढ़ने में मीडिया का जवाब नहीं। किसी भी भ्रष्ट को छाप दीजिए बस अगले चार दिन बाद वही बेइमान किसी दल का भावी उम्मीदवार होता है। सच यह है कि हम लोग अब भ्रष्टाचार को पसंद कर रहे हैं ओर भ्रष्टाचारी हमारे आदर्श बन चुके हैं।
वास्तव में एक नई क्रांति की ज़रूरत आन पड़ी है। ऐसी क्रांति जिसमे हर व्यक्ति को व्यक्तिगत रूप से योगदान करना होगा, अपने ऐसे जनप्रतिनिधियों को देश की कु-सेवा से दूर करने का। मुझे एक टीवी ऐड यद् आ रहा है जिसमे संदेश दिया जाता है की अगर हम वोट देने नही जातें हैं तो इसका मतलब हम सो रहे हैं।
मेरा कहना है की अगर हम बेईमानों, अपराधियों और देश को गर्त में ले जाने वाले सफेदपोश को अपना वोट दे रहे हैं तो इसका मतलब हम अभी चिर निद्रा में ही हैं, हमें अपने देश की चिंता ही नही है।
Saturday, March 14, 2009
कहीं फ़िर बेवकूफ न बनें
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