Friday, May 15, 2009

.... कि बंद आंखों से वे दुनिया को देखते हैं

हमारे पडोसी देश पाकिस्तान की हालत पर अब कुछ तरस सा आने लगा है. बंद आंखों से दुनिया को देखने वाले इस देश को और देशों की शांति और सुशासन शायद रास नहीं आती है और कभी तालिबानियों तो कभी आतंकियों के माध्यम से इसे साबित भी करता रहा है. उसके खुद के घर में आग लगी हुई है और पूरा देश उस आग में जो कि खुद उसी के द्वारा लगाई गयी है, झुलस रहा है. आम लोगों का जीना मुहाल हो गया है और स्वात घाटी से पलायन ही सारी कहानी बयां कर जा रही है. रोज अखबारों में वहां की शांति और सुशासन की कलई खुल रही है लेकिन उसे इससे इत्तेफाक कहां?
हाल ही में आईसीसी ने पाकिस्तान से विश्वकप क्रिकेट की मेजबानी छीन ली तो वहां के हुक्मरानों को जैसे आग लगी और खुद पीसीबी आक्रामक हो उठा. वे पूरी दुनिया को यह जतलाने की कोशिश करने में जुटे हुए हैं कि अगर पाकिस्तान के हालात ऐसे नहीं हैं कि वहां क्रिकेट का महाकुंभ नहीं लग सकता तो भारत, श्रीलंका और बांग्लादेश के हालात भी इसकी गवाही नहीं देते. आईसीसी के पूर्व अध्यक्ष पाकिस्तान के अहसान मनी तो इसके लिए सीधे ही भारत को दोषी ठहरा रहे हैं. वैसे दूसरे “अहसानों” की पाक में कमी नहीं है. विश्वकप की मेजबानी के लिए अपने घर में माहौल न होने के बावजूद पीसीबी का सही जगह होने का दावा करना हास्यास्पद ही है और रवैया काफी कुछ अपनी सरकारों जैसा ही. भारत में कत्लेआम मचाने के लिए आतंकवादियों को शह देने वाला पाक और उसकी सेना, गुप्तचर एजेंसी आईएसआई पूरी दुनिया को यह बताने से नहीं चूकते कि वे खुद ही आतंकवाद ग्रसित देशों में हैं. दरअसल ऐसा कर वह अमेरिका से मिलने वाली सहायता राशि गंवाना नहीं चाहता और अपनी राजनीतिक रोटियों को जलते हुए नहीं देखना चाहता. पाकिस्तान का राजनीतिक आधार कुछ ऐसा है कि सत्ता पर काबिज होने के लिए अपने बडे भाई भारत का विरोधी तो होना ही होगा. संवदनाओं को जेहाद के माध्यम से भडकाकर वे जिस पाकिस्तान की कल्पना करना चाह रहे हैं क्या वह तरक्कीपसंद नुमाइंदों की पहचान कही जा सकती है?
जिस देश ने सदियों पुराने शरीयत को स्वात घाटी (अघोषित रुप से तो कई अन्य जगहे भीं) में मान्यता देकर तालिबानियों के चश्में से दुनिया को देखने और दिखाने की कोशिश की हो उसे तरक्की पसंद देश की संज्ञा कैसे दी जा सकती है। खुद अपना दामन बचाने के लिए वहां के राजनीतिज्ञों ने जिस तालिबान का सहारा लिया क्या उससे यह आशा की जा सकती है कि अमेरिकी दबाव में वह तालिबानियों पर आक्रमण कर उसे नेस्तनाबूद करने की इक सही कोशिश भी करेगा। जब मुंबई में कुछ महीनों पूर्व हुए आतंकी हमले में सैकडों बेगुनाहों का खून पानी की तरह बहा दिया गया था और जब इस दुस्साहसिक हमले में पाकिस्तान का साफ हाथ नजर आया तो पहले इनकार और फिर हमले में पकडे गये एकमात्र आतंकी अजमल कसाब के खुद यह बयान देने कि वह पाकिस्तान का नागरिक है, पाक हुक्मरान सकते में आ गये थे। कसाब के खुलासे के बाद कि मुंबई के समुद्री तटों तक पहुंचने में पाक सेना ने भी मदद की थी, लीपापोती करने में जुट गया था पाक। यहां तक कि उसे माता-पिता को डराया धमकाया गया, लश्कर-ए-तइबा के जिस आतंकी अब्दुल रहमान लखवी को कसाब ने अपना आका बताया, दुनिया को दिखाने के लिए उसे घर में ही नजरबंद किया गया, जहां से वह लापता हो गया। यह खबर पाक मीडिया ने ही दी। क्या इससे पाक का यह दोगलापन सामने नहीं आया कि मुंबई हमलों में पाक का हाथ नहीं है और फिर लखवी को कैद करने की भी जरुरत आन पडी। लापरवाही तो खैर पाकिस्तान का चेहरा ही है। शायद वह यह नहीं सोच रहा कि इस आग में एक दिन पाकिस्तान के अस्तित्व पर भी संकट उठ खडा होगा। वैसे यह बात पाकिस्तान के एक उपन्यासकार और राजनीति की गहरी समझ रखने वाले व्यक्ति ने भी हिंदुस्तान के एक शीर्ष दैनिक में एक लेख के माध्यम से उजागर किया है.
खैर, बात क्रिकेट की,
पीसीबी की ओर से यह बयान लगातार जारी हो रहे हैं कि भारत, श्रीलंका और बांग्लादेश में स्थिति विश्वकप कराने जैसी नहीं है. वहां के माहौल खेल आयोजित कराने जैसे नहीं हैं. चलो हम मान भी लें कि पीसीबी सही कह रहा है तो फिर उसने जुलाई के बाद श्रीलंका में अपनी क्रिकेट टीम भेजने के लिए वह राजी कैसे हो गया. क्या यहां पर उसका दोमुहापन उजागर नहीं होता. दरअसल पाक नहीं चाहता कि भारत को विश्वकप आयोजन का श्रेय मिले. हालात का मुद्दा तो दुनिया को असल हकीकत से दूर ले जाने का प्रयास है. वैसे पाकिस्तान जरा यह तो बताये कि श्रीलंकाई क्रिकेट टीम पर हमला कहां पर हुआ, भारत में, बांग्लादेश में या श्रीलंका में?
खैर पाकिस्तान क्या सोच रहा है इससे हमें कोई फर्क नहीं पडना चाहिए लेकिन उसकी सोच की शुरुआत और अंत भारत से ही होता है तो जरुर सोचने वाली बात है। पाक से इतर भारत की बात करें यहां के राजनीतिज्ञों में इस बात की प्रतिबद्धता नजर नहीं आती कि आतंकवादियों के खिलाफ सही कार्रवाई भी होनी चाहिए. उनके लिए तो यह मुद्दा केवल वोट खींचने तक ही सीमित है.

वैसे तरस तो हमें खुद पर भी आने लगा है,
आखिर हमारी सोच भी तालिबान जैसी क्यों नहीं है---
हम तालिबान को जी भरकर कोसते हैं क्योंकि वे लड़कियों के स्कूल जलाते हैं, हम उन्हें नामर्द कहते हैं। वे कोड़े बरसाते हैं तो हम उन्हें ज़ालिम कहते हैं। वे टीचर्स को भी पर्दों में रखते हैं , हम उन्हें जंगली कहते हैं।
हमारी सोच तालिबानी क्यों नहीं-
- क्योंकि हम हमारी संस्कृति और इज़्ज़त की रक्षा के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहते हैं।
- क्योंकि हम यह सुनते ही उबल उठते हैं कि जाट की लड़की दलित के लड़के के साथ भाग गई। उन्हें ढूंढते हैं , पेड़ों से बांधते हैं और जला डालते हैं ... ताकि संस्कृति बची रहे।
- क्योंकि इस काम में लड़की का परिवार पूरी मदद करता है , क्योंकि उसके लिए इज़्ज़त बेटी से बड़ी नहीं।
- क्योंकि हम उस समय भन्ना उठते हैं , जब लड़कियों को छोटे - छोटे कपड़ों में पब और डिस्को जाते देखते हैं। फौरन एक वीरों की सेना बनाते हैं। सेना के वीर लड़कियों की जमकर पिटाई करते हैं और उनके कपड़े फाड़ डालते हैं।
- क्योंकि जिन्हें संस्कृति की परवाह नहीं , उनकी इज़्ज़त को तार - तार किया ही जाना चाहिए। उसके बाद हम ईश्वर की जय बोलकर सबको अपनी वीरता की कहानियां सुनाते हैं।
- क्योंकि जो रेप के लिए लड़की को ही कुसूरवार ठहराते हैं क्योंकि उसने तंग और भड़काऊ कपड़े पहने हुए थे।
- क्योंकि हम अपनी गर्लफ्रेंड्स का mms बनाने और उसे सबको दिखाने में गौरव का अनुभव करते हैं और हर mms का पूरा लुत्फ लेते हैं।
- क्योंकि यह सब करने के बाद हम बड़ी शान से टीवी के सामने बैठकर तालिबान की हरकतों को ' घिनौना न्याय ' बताकर कोसते हैं और अपनी संस्कृति को दुनिया में सबसे महान मानकर खुश होते हैं।

2 comments:

  1. काफी दिन बाद ब्लाग अपडेट कर रहे हैं आप. खैर,
    इस लेख में आपने बहुत कुछ कहने की कोशिश की है और कई बिंदुओं को साथ में पिरोने की कोशिश भी. अच्छा प्रयास रहा. घर में लगी आग और दूसरों को दे रहे नसीहत. पाकिस्तान को आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई के लिए सही और सख्त रवैया अपनाना ही होगा दिखावे से काम नहीं होगा.वैसे आंख पर तो पटटी अमेरिका ने भी बांध रखी है लेकिन जबसे चश्मा बराक ओबामा का लगा है कुछ प्रयास नजर आ रहे हैं. वह कितना सफल होंगे यह तो वक्त ही बतायेगा.
    शिखा कुशवाहा

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  2. बहुत खूब श्री मान, पहले तो इतने लम्बे अरसे तक ब्लॉग पर कुछ लिखा नहीं और अब लिखा है तो इतना की पढ़ नहीं पा रहा . कोई बात नहीं अच्छा है की आप ने लिखना तो शुरू किया . इसलिए बधाई हो . लेकिन फॉण्ट कुछ बड़ा कर लीजिये . मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है : www.gooftgu.blogspot.com

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