Sunday, May 17, 2009

राष्ट्रीय राजनीति के हाशिए पर वाम दल

पिछले पांच वर्ष से केंद्र की राजनीति में छाए रहे वाम दल पश्चिम बंगाल का किला टूटने के साथ ही अचानक नाटकीय रूप से राष्ट्रीय राजनीति के हाशिए पर पहुंच गए हैं। पश्चिम बंगाल और केरल में वाम दलों का पत्ता साफ हुआ है और कांग्रेस के नेतृत्व वाले गठजोड़ ने उन्हें करारी शिकस्त दी है। तीसरे मोर्चे के गठन के साथ ही केंद्र में गैर कांग्रेस सरकार बनाने का सपना देख रहे वाम की किरकिरी हो गई। पिछले लोकसभा चुनाव के मुकाबले इस बार वाम मोर्चा को आधी ही सीटें मिलने की उम्मीद है। केरल में माकपा नीत वाम मोर्चा को 2004 में 20 में से 19 सीटें मिली थीं, लेकिन इस बार केवल चार सीटों पर ही पकड़ बनी है। विश्लेषक माकपा नेताओं केरल के मुख्यमंत्री वीएस अच्युतानंदन व सचिव पिनाराई विजयन के बीच हुए विवाद को हार की वजह बता रहे हैं। प. बंगाल में ममता की तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस के गठबंधन ने वाम दलों की सीटों की संख्या अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंचा दी है। वाम दलों ने भारत अमेरिकी परमाणु करार के मुद्दे पर संप्रग सरकार से समर्थन वापस ले लिया था। वाम दलों ने गैर कांग्रेस और गैर भाजपा वैकल्पिक सरकार बनाने के इरादे से तीसरा मोर्चा बनाया। माकपा भाकपा फारवर्ड ब्लाक आरएसपी के अलावा तीसरे मोर्चे में मायावती की बसपा एच डी देवगौड़ा की जद एस एन चंद्रबाबू नायडू की तेदेपा और अन्नाद्रमुक की जे जयललिता शामिल हुइं। मोर्चे में शामिल टीआरएस पिछले सप्ताह की राजग में शामिल हो गया था। बीजद के भाजपा से संबंध तोड़ने के बाद वाम मोर्चा काफी उत्साहित था। वाम दलों के नेताओं ने चुनाव बाद के परिदृश्य में स्पष्ट कर दिया है कि वे कांग्रेस नीत सरकार का समर्थन करने की बजाय विपक्ष में बैठना पसंद करेंगे।

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