एक तरफ़ विजय माल्या के पास अपने भारतीय कर्मचारियों को वेतन देने के लिए पैसे नही हैं तो दूसरी तरफ़ वे क्रिकेट के बाज़ार में एक फिरंगी केविन पीटरसन को 7.55 करोड की रकम देने को तैयार हो गए। हो सकता है उनकी कंपनी (शराब और हवाई ज़हाज़) में काम करने वाले कर्मचारी क्रिकेटर पीटरसन की तरह गोरे चिट्टे न हो लेकिन माल्या साहब यह क्यो भूल गए की आज अगर वे पीटरसन को 7.55 करोड में खरीदने लायक हुए हैं तो केवल अपने देशी कर्मचारियों की वजह से ही जिन्होने उनकी कंपनी को कामयाबियों की बुलंदियों तक पहुचाया।
क्या अब किसी मंदी का असर नही है। या फ़िर वो केवल उनकी कंपनी में काम करने वाले भारतीय कर्मचारियों के लिए ही था। यही नही एक और अंग्रेज क्रिकेटर फ्लिंटाफ को चेन्नई सुपर किंग्स ने भी इतनी ही कीमत में खरीदा और ये जता दिया की भारतीय चाहे जितने भी योग्य हो अंग्रेजो से उनकी कीमत कम ही रहेगी।
द ग्रेट इण्डियन बाजार-
* 8.47 करोड रूपए खर्च कर चेन्नई सुपर किंग्स रहा पहले स्थान पर
* 8.33 करोड रूपए खर्च कर बंगलौर रॉयल चैलेंजर्स रहा दूसरे स्थान पर
* 37.25 करोड रूपए सभी फ्रेंचाइजीज ने कुल मिला कर खर्च किए दूसरे संस्करण में
मेरा सवाल - अभी हम गुलाम क्यों नही हैं?
Saturday, February 7, 2009
फिरंगियों की जय हो!
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