Wednesday, June 10, 2009

फिर भी कलावती गरीब ही रहेगी

आप कलावती को तो जानते ही होंगे? नहीं... तो राहुल गांधी को तो जरुर जानते होंगे. देखा आपके चेहरा खिल गया ना. मैं जानता था कि आप राहुल गांधी को जरुर जानते होंगे। तभी तो आपके चेहरे की रौनक बढ गयी लेकिन जिस कलावती को आप नहीं जानते उसे राहुल गांधी जरुर जानते हैं। यह वही कलावती हैं जो समाज के बेहद निम्न तबके/दलित वर्ग से आती है और इसी कलावती के घर पर भोजन कर राहुल गांधी ने कांग्रेस के चेहरे की मुस्कान लाने की कोशिश की और उनका यह प्रयास सुफल रहा जब 15वीं लोकसभा के लिए हुए चुनाव में कांग्रेसनीत यूपीए ने बाजी मार ली थी. चुनाव के बाद कांग्रेसनीत यूपीए की ताकत और मुस्कान तो बढी लेकिन नहीं बदली तो कलावती की किस्मत और उसके चेहरे की समयपूर्व झुर्रियां. आज भी उसके चेहरे पर गहन अवसाद की छाया नजर आती है जिसको राजनीति का राहुल रुपी तेज भी नहीं बदल सका.
खैर, बात कलावती की तो बतो दें कि वह महाराष्ट्र के एक जिले की रहने वाली बेहद गरीब महिला है। वैसे तो वह बडी नाम बन चुकी है क्योंकि उसकी चर्चा संसद में दो बडे राजनेताओं द्वारा जो की गयी। अब तो वह जाना पहचाना नाम बन चुकी है सो आपको पता होना चाहिए था. जाना पहचाना नाम बन जाने के बावजूद कलावती की किस्मत ने करवट नहीं बदली. वह भी तब जब संसद में पिछले साल राहुल ने कलावती का जिक्र कर भारत की गरीबी को रेखांकित किया था. ऐसा लगा था मानों अबकी बार कलावती और उस जैसे तमाम लोगों की गरीबी बस दूर हुई समझो. यही नहीं महिला आरक्षण पर चर्चा के दौरान भी लालू प्रसाद यादव ने कलावती, भगवती की चर्चा कर डाली. लालू ने इस बिल पर बोलते हुए कहा कि इसमें ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए जिससे कलावती जैसी करीब महिलाएं भी संसद में आ सकें.
फिलहाल तो कलावती दिल्ली में हैं और गरीबों के लिए न्याय की उम्मीद कर रही हैं। दरअसल गरीबी भोलेपन के साथ ही नजर आती है। कलावती का भोलापन भी देखिए, उसका मानना है कि राहुल ने जो विश्वास दिलाया था वह एक दिन पूरा होगा, भले ही अब तक जो वादे उससे किए गये थे उस पर रत्ती भर भी अमल न हुआ हो। यह गरीबी इतनी भोली होती है कि आश्वासनों के सहारे सैकडों वर्ष् गरीबी में ही उम्मीदी के दीये के साथ के साथ् जिंदगी काट लेती है और इसे देश के नेता बखूबी समझते हैं.

वादे हैं वादों का क्या
राहुल ने कलावती को घर दिलाने का वादा तो कर दिया था लेकिन न तो उचित दिशानिर्देश दिये गये और न ही उसकी स्थिति में कोई सुधार ही हुआ है। कलावती यानि आम जनता जो सरकार चुनती है ताकि उसकी समस्याएं सुलझाईं जा सकें, का मामला यह साबित करता है कि एक बडे नेता द्वारा किया गया वादा एक साल बाद भी पूरा नहीं होता. इसके पीछे नौकरशाही रवैये को दोषी ठहराया जाता है जो हर बात को फाइल दर फाइल आगे बढाता है. वास्तव में अगर कहीं कमी है तो प्रतिबद़धता की और राजनीतिक/प्रशासिनक सुचिता की.
कर्ज में डूबी कलावती जैसी आम जनता जब अधिकारियों के पास जाकर अपनी समस्या बताती है तो अधिकारी भी ढेर सारे वादे करते हैं लेकिन ये वादे जैसे पूरे होने के लिए होते ही नहीं। उसे वादे के मुताबिक न तो घर मिलते हैं न ही गांव के लिए स्वास्थ्य केंद्र, और तो और गांव के बच्चों के लिए अंग्रेजी स्कूल तो आज भी एक बडा सपना है।
वास्तव में कलावती सिर्फ एक महिला नहीं बल्कि देश की जनता का प्रतिनिधित्व करती है। उस जनता की जिसको हर पांच साल बाद लोक लुभावन नये नारों और वादों की घुट्टी पिलाई जाती है, उसको अचानक ही चांद की सैर और उन ख्वाबों को पूरा करने का सब्जबाग दिखाया जाता है, जो वह सैकडो वर्षों से देखता आ रहा होता है। भई मानना पडेगा इस राजनीतिक वायदों की घुट्टी को जिसको पीने के बाद आम जन धैर्य से अगले पांच सालों का इंतजार करती है, अगली बार यह घुट्टी पीने का।

1 comment:

  1. कलावती गरीब है,
    आज गरीबो का कोइ नही सुनता,
    राहुल का आश्वासन केवल चुनवी वादा था।
    जो शायद पुरा हो।

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