भगवान विष्णु की पत्नी और धन की देवी लक्ष्मी का पूजन कार्तिक अमावस्या को संपूर्ण भारतवर्ष में सभी वर्गों द्वारा समान रूप से किया जाता है। पूर्व ईशान कोण में वेदी बनाकर उस पर लाल कपड़ा बिछा दिया जाता है। इस पर लक्ष्मीजी की सुंदर प्रतिमा और ईशान में श्रीयंत्र विराजित करें।
इसके बाद चावल-गेहूँ की नौ-नौ ढेरी बनाकर नवग्रहों के समान सजाएँ। शुद्ध घी का दीपक प्रज्वलित कर 1 या 5 खुशबूदार अगरबत्ती जलाएँ। इत्र आदि का सुगंधित द्रव्य के बाद गंध पुष्पादि से नैवेद्य चढ़ाकर यह मंत्र बोलें-
गुरुर्बह्मा गुरु र्विष्णु गुरु र्देवो महेश्वर:।गुरु साक्षात्परब्रह्मं तस्मै श्री गुरुवे नम:।।
इसके बाद निम्न मंत्र का जाप करें-
ब्रह्मा मुरारी त्रिपुरांतकारी भानु: शशि भूमि सुतो बुधश्च।गुरुश्च शुक्र शनि राहु केतव सर्वे ग्रहा शांति करा भवंतु।।
इसके बाद आसन के नीचे कुछ मुद्रा रखकर उसके ऊपर सुखासन (पालथी मारकर बैठे) में बैठकर सिर पर रुमाल या टोपी लगाकर शुद्ध चित्त मन से इस मंत्र का जितना भी बन पड़े जाप करना चाहिए
- ॐ श्रीं ह्रीं कमले कमलालये।प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्री महालक्ष्मै नम:।।
महानिशिथ काल में लक्ष्मीजी का जाप करने से लक्ष्मीजी प्रसन्न होती हैं। यह समय मध्य रात्रि 12.11 से 1.46 तक है।
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