प्रशांत महासागर के आकाश में बनने वाले बादलों के जलवायु पर असर के अध्ययन के लिए चिली में एक अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक अभियान शुरू हो रहा है। इसमें 10 देशों के विशेषज्ञ भाग लेंगे. उल्लेखनीय है कि बादल एक विशाल दर्पण की तरह काम करते हैं, और इस तरह सूर्य की किरणों को परावर्तित कर ये अपने नीचे के समुद्र को ठंडा करने में योगदान देते हैं.
जहाँ तक प्रशांत महासागर के आकाश के बादलों की बात है तो इनमें से कुछ तो बढ़ कर अमरीका के आकार से भी बड़े हो जाते हैं। अब 10 देशों के 200 जलवायु विज्ञानियों का एक दल इन बादलों के प्रभाव का विशद अध्ययन करने जा रहा है. वैज्ञानिकों की रूचि ये जानने में भी होगी कि खनन कार्य जैसी व्यावसायिक गतिविधियों से होने वाले प्रदूषण का बादलों पर कितना और किस तरह का असर पड़ता है.
महीने भर तक चलने वाले इस अध्ययन का केंद्र होगा दक्षिण अमरीकी देश चिली.
ब्रितानी दल इस अध्ययन में ब्रिटेन के वायुमंडलीय विज्ञान के राष्ट्रीय केंद्र(एनकैस) के 20 वैज्ञानिक भी शामिल हो रहे हैं। एनकैस के दल के मुख्य वैज्ञानिक ह्यू को ने प्रशांत महासागरीय बादल प्रणाली के बारे में कहा, "ये दुनिया के सबसे बड़ी बादल प्रणालियों में से हैं, और हम जानते हैं कि इनकी जलवायु परिवर्तन में बड़ी भूमिका होगी. लेकिन हमें ये भी पता है कि जलवायु संबंधी मौजूदा वैज्ञानिक मॉडेल इस बारे में सही जानकारी नहीं दे पाते हैं."
उन्होंने उम्मीद जताई कि इस व्यापक अध्ययन के बाद मौजूदा जलवायु मॉडेल की अनिश्चितताओं से पार पाया जा सकेगा। प्रोफ़ेसर को का दल दो विमानों के ज़रिए आँकड़े जुटाएगा. वायुमंडल के निचले हिस्से में जमा बादलों के बीच घूमते हुए इन विमानों से जुड़े विशेष उपकरण बादलों की निर्माण प्रक्रिया और उसके आसमान में मौजूद रहने की अवधि के बारे में ज़्यादा-से-ज़्यादा जानकारी जुटा पाएँगे.
ये अध्ययन वोकल्स नामक एक त्रिवर्षीय अंतरराष्ट्रीय अभियान के तहत किया जा रहा है जिसमें बादलों, समुद्रों और भूखंडों के बीच के जटिल संबंधों की पड़ताल की जानी है.
जहाँ तक प्रशांत महासागर के आकाश के बादलों की बात है तो इनमें से कुछ तो बढ़ कर अमरीका के आकार से भी बड़े हो जाते हैं। अब 10 देशों के 200 जलवायु विज्ञानियों का एक दल इन बादलों के प्रभाव का विशद अध्ययन करने जा रहा है. वैज्ञानिकों की रूचि ये जानने में भी होगी कि खनन कार्य जैसी व्यावसायिक गतिविधियों से होने वाले प्रदूषण का बादलों पर कितना और किस तरह का असर पड़ता है.
महीने भर तक चलने वाले इस अध्ययन का केंद्र होगा दक्षिण अमरीकी देश चिली.
ब्रितानी दल इस अध्ययन में ब्रिटेन के वायुमंडलीय विज्ञान के राष्ट्रीय केंद्र(एनकैस) के 20 वैज्ञानिक भी शामिल हो रहे हैं। एनकैस के दल के मुख्य वैज्ञानिक ह्यू को ने प्रशांत महासागरीय बादल प्रणाली के बारे में कहा, "ये दुनिया के सबसे बड़ी बादल प्रणालियों में से हैं, और हम जानते हैं कि इनकी जलवायु परिवर्तन में बड़ी भूमिका होगी. लेकिन हमें ये भी पता है कि जलवायु संबंधी मौजूदा वैज्ञानिक मॉडेल इस बारे में सही जानकारी नहीं दे पाते हैं."
उन्होंने उम्मीद जताई कि इस व्यापक अध्ययन के बाद मौजूदा जलवायु मॉडेल की अनिश्चितताओं से पार पाया जा सकेगा। प्रोफ़ेसर को का दल दो विमानों के ज़रिए आँकड़े जुटाएगा. वायुमंडल के निचले हिस्से में जमा बादलों के बीच घूमते हुए इन विमानों से जुड़े विशेष उपकरण बादलों की निर्माण प्रक्रिया और उसके आसमान में मौजूद रहने की अवधि के बारे में ज़्यादा-से-ज़्यादा जानकारी जुटा पाएँगे.
ये अध्ययन वोकल्स नामक एक त्रिवर्षीय अंतरराष्ट्रीय अभियान के तहत किया जा रहा है जिसमें बादलों, समुद्रों और भूखंडों के बीच के जटिल संबंधों की पड़ताल की जानी है.
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