Tuesday, February 17, 2009

ऑस्कर जीतने चली पिंकी


ऑस्कर का मतलब तो उसे नहीं मालूम, लेकिन वह भोली सी मुस्कान के साथ कहती है, 'स्कूल में बच्चे कहते हैं, 'पिंकी अमेरिका जाना है, ऑस्कर जीतकर लाना है।' जी हाँ, ऑस्कर की चमचमाती ट्रोफी जीतने का ख्वाब लिए 8 साल की पिंकी अपने पिता राजेंद्र सोनकर और डॉक्टर सुबोध कुमार सिंह के साथ अमेरिका रवाना हो गई।
पिंकी मेगन मायलन की डॉक्युमेंट्री फिल्म 'स्माइल पिंकी' का मेन करैक्टर है, जिसे ऑस्कर पुरस्कारों के लिए डॉक्युमेंट्री फिल्म की कैटिगरी में नॉमिनेट किया गया है। 23 फरवरी को जब लॉस ऐंजिलिस के कोडक थियेटर में ऑस्कर का रंगारंग समारोह होगा, तब अपनी नन्ही पिंकी भी वहां मौजूद होगी। स्माइल पिंकी' यूपी के मिर्जापुर जिले की मासूम लड़की के इर्दगिर्द घूमती है, जिसके होंठ और तालू कटे हुए थे। आठ साल की यह मासूम बच्ची न तो हिंदी जानती है न इंग्लिश। वह सिर्फ भोजपुरी में बातें करती हैं।
'क्लैफ्ट पैलेट' की शिकार इस मासूम ग्रामीण बच्ची का इंटरनैशनल एनजीओ 'स्माइल ट्रेन' ने मुफ्त ऑपरेशन कराया। इस इंटरनैशनल एनजीओ के देश भर में 166 सेंटर हैं और 10 सालों में 'क्लैफ्ट पैलेट' के शिकार 5 लाख बच्चों का ऑपरेशन करा चुका है। अब पिंकी के होंठों पर न सिर्फ मुस्कान लौट आई है, बल्कि वह स्कूल भी जाने लगी है। पिंकी का ऑपेशन करने वाले डॉक्टर सुबोध का कहना है, 'कटे होंठों की वजह से पिंकी अपना सेल्फ कॉन्फिडंस खो चुकी थी। वह गहरे डिप्रेशन में थी, लेकिन उनमें जीने की तमन्ना थी।' 18 मार्च 2007 को हुए ऑपरेशन से पिंकी को नया चेहरा मिला। अब वह अमेरिका की उड़ान पर है। उम्मीद तो यही है कि 'स्लम डॉग मिलिनेअर' के साथ 'स्माइल पिंकी' भी ऑस्कर की ट्रोफी अपने नाम करने में कामयाब होगी और होंठों पर अट्रैक्टिव स्माइल लिए इंडिया लौटेगी।

1 comment:

  1. भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास) की सदस्यता हेतु आमंत्रण!

    आज हमारे देश में जिन लोगों के हाथ में सत्ता है, उनमें से अधिकतर का सच्चाई, ईमानदारी, इंसाफ आदि से दूर का भी नाता नहीं है।
    अधिकतर तो भ्रष्टाचार के दलदल में अन्दर तक धंसे हुए हैं, जो अपराधियों को संरक्षण भी देते हैं।

    इसका दु:खद दुष्परिणाम ये है कि ताकतवर लोग जब चाहें, जैसे चाहें देश के मान-सम्मान, कानून, व्यवस्था और संविधान के साथ बलात्कार करके चलते बनते हैं और किसी को सजा भी नहीं होती। जबकि बच्चे की भूख मिटाने हेतु रोटी चुराने वाली अनेक माताएँ जेलों में बन्द हैं। इन भ्रष्ट एवं अत्याचारियों के खिलाफ यदि कोई आम व्यक्ति, ईमानदार अफसर या कर्मचारी आवाज उठाना चाहे, तो उसे तरह-तरह से प्रताड़ित एवं अपमानित किया जाता है और पूरी व्यवस्था अंधी, बहरी और गूंगी बनी रहती है।

    यदि ऐसा ही चलता रहा तो आज नहीं तो कल, हर आम व्यक्ति को इन आतताईयों का शिकार होना ही होगा। तब आम व्यक्ति की रक्षा करने वाला कोई नहीं होगा!

    ऐसे हालात में आम व्यक्ति के पास केवल दो रास्ते हैं-
    1- या तो हम आतताईयों के जोर-जुल्म को चुपचाप सहते रहें! या
    2- समाज के सभी अच्छे, सच्चे, देशभक्त, ईमानदार और न्यायप्रिय लोग एकजुट हो जायें!

    क्योंकि लोकतान्त्रिक व्यवस्था में आम लोगों की समर्पित, संगठित तथा एकजुट ताकत के आगे झुकना नौकरशाही और सत्ता की मजबूरी है।

    इसी पवित्र इरादे से भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास) की आजीवन सदस्यता का आमंत्रण आज आपके समक्ष प्रस्तुत है।
    निर्णय आपको करना है!
    यदि आप सदस्यता ग्रहण करने के इच्छुक हैं तो अपनी पात्रता जांचने के लिये, नीचे दिये लिंक पर क्लिक करें :-

    http://baasindia.blogspot.com/
    Mob . : 09828502666

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