बढ़ती महंगाई की वजह से लोगों का जीना दूभर हो रहा है। लेकिन सरकार अब भी 'गरीबी' की अपनी परिभाषा बदलने को तैयार नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के समक्ष सरकार ने कहा है कि शहरी क्षेत्रों में 455 रुपये प्रति महीना और ग्रामीण क्षेत्रों में 328 रुपये प्रति महीना कमाने वाले व्यक्ति को गरीब नहीं माना जाएगा।
स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने जो ताजा शपथ पत्र दाखिल किया है, उसके मुताबिक 1999 - 2000 की कीमतों के आधार पर ऑल इंडिया लेवल पर गरीबी रेखा का मतलब ग्रामीण और शहरी इलाकों में क्रमश: 327.56 रुपये और 454.11 रुपये प्रति महीने की कमाई है।
सरकार की स्कीम में गरीबी रेखा मासिक आय के आधार तय होती है। यह पैमाना राज्यवार लिए गए आंकड़ों से तैयार किया जाता है। अगर महानगरों को देखें तो दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और चेन्नै में गरीबी रेखा से नीचे के लोगों की मासिक आय क्रमश: 506 रुपये, 540 रुपये, 410 रुपये और 475 रुपये होनी चाहिए। इसका मतलब अगर दिल्ली में आपकी रोजाना कमाई 17 रुपये, मुंबई में 18 रुपये, कोलकाता में 14 रुपये और चेन्नै में 16 रुपये से अधिक है तो आप गरीब नहीं कहे जाएंगे।
यह एफिडेविट एक एनजीओ 'आजादी बचाओ आंदोलन' द्वारा दाखिल की गई याचिका के मद्देनजर दाखिल किया गया था। एनजीओ ने सरकार पर आरोप लगाया था कि सरकार देश में गरीबी की समस्या के प्रति गंभीर नहीं है। इस परिभाषा के आधार पर 26 करोड़ से अधिक लोग गरीब हैं।
Saturday, November 15, 2008
455 रुपये महीना कमाने वाले भी 'गरीब' नहीं
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