पिछले कुछ साल में बॉलिवुड में बच्चों के लिए कम-से-कम एक दर्जन फिल्में बनाई गईं। आमिर खान की फिल्म 'तारे ज़मीं पर' की कहानी एक मंदबुद्धि बच्चे पर आधारित थी। इस फिल्म ने तो बॉक्स ऑफिस पर खूब मुनाफा कमाया, लेकिन 'तहान' और 'रामचंद पाकिस्तानी' जैसी फिल्मों की स्क्रिप्ट में बच्चे कहीं पीछे छूट गए।
बच्चों की पढ़ाई पर आधारित 'नन्हा जैसलमेर' की स्क्रिप्ट में कुछ नयापन तो था, लेकिन फिल्म की कहानी बॉबी देओल के इर्द-गिर्द ही घूमती रही। विशाल भारद्वाज की 'ब्लू अंब्रेला' को तो नैशनल अवॉर्ड तक से सम्मानित किया गया। राहुल बोस की 'चेन कुली की मेन कुली', सहारा व परसेप्ट पिक्चर्स की एनिमेशन फिल्म 'हनुमान', अनुराग कश्यप की 'बाल गणेश', 'माई फ्रेंड गणेश', 'रिटर्न ऑफ हनुमान' जैसी फिल्में भी काफी चर्चा में रहीं।
अजय देवगन की 'राजू चाचा' हालांकि बच्चों की उम्मीदों पर खरी नहीं उतर सकी, लेकिन फिल्म ठीकठाक चली। भारत में बच्चों की फिल्मों का उतना बड़ा मार्किट कभी नहीं रहा, लेकिन इधर कुछ समय से बच्चों की कई फिल्में आई हैं। पहले निर्माता बच्चों के लिए अच्छी और बड़े बजट की फिल्म बनाने में खास रुचि नहीं लेते थे। उन्हें फिल्म के फ्लॉप होने का डर रहता था, लेकिन अब ट्रेंड बदल रहा है।
अब बॉलिवुड में भी बच्चों के लिए काफी कुछ हो रहा है, लेकिन हॉलिवुड की फिल्मों से मुकाबला करने के लिए बॉलिवुड को अभी एक लंबी दूरी तय करनी होगी। ऐसा इसलिए है क्योंकि अपने यहां बनने वाली बच्चों की फिल्मों में कई बार बच्चे कहीं पीछे छूट जाते हैं, जबकि हॉलिवुड की फिल्मों में बच्चों की मानसिकता का पूरा ध्यान रखा जाता है।
'हैरी पॉटर', 'स्पाइडरमैन' और 'बैटमैन' जैसी फिल्में इस बात का उदाहरण है। मुनाफे का सौदा बॉलिवुड में कुछ समय से एक और ट्रेंड भी देखने को मिला है। नामी डायरेक्टर और कॉर्परट घराने सीधे या अप्रत्यक्ष रूप से बच्चों की फिल्मों से जुड़ रहे हैं। बाल फिल्मों से होने वाले जबर्दस्त मुनाफे को इसकी एक बड़ी वजह माना जा सकता है। 'मकड़ी', 'कृष' और 'हनुमान' जैसी फिल्में जब बॉक्स ऑफिस पर शानदार कारोबार करती हैं, तो बड़े निर्माताओं को लगता है कि ऐसी फिल्में मुनाफे का सौदा हैं। जाहिर है, वे ऐसे प्रॉजेक्ट्स में हाथ आजमाने की बात सोचेंगे ही। 'ब्लू अंब्रेला' के डायरेक्टर विशाल भारद्वाज कहते हैं, 'आने वाला समय बच्चों की फिल्मों का है। वह दिन दूर नहीं, जब बच्चे फिल्मों के लीड रोल में होंगे। यहां तक कि स्मॉल स्क्रीन पर भी बच्चों का जलवा छाने लगा है। 'बालिका वधू' में आनंदी के रोल की शानदार कामयाबी आपके सामने है।'
चरित्रों को पहचान बीते वक्त के कलाकार सारिका, सचिन, मास्टर राजू, जूनियर महमूद, मास्टर अलंकार, बेबी नाज, बेबी गुड्डू ने चाइल्ड आर्टिस्ट के रूप में काफी नाम कमाया, लेकिन उन्होंने बच्चों की किसी फिल्म में काम नहीं किया। वैसे, आजकल बच्चों को फिल्मों में निभाए गए चरित्रों से खूब पहचान मिल रही है। 'तारे ज़मीं पर' में स्पेशल बच्चे का रोल निभा चुके दर्शील सफारी अपनी पहली ही फिल्म से दर्शकों के दिलोदिमाग पर छा गए। अपने तमाम फैंस के दिलों पर राज करने वाली श्रीदेवी को फिल्म 'जूली' में हीरोइन की छोटी बहन के रूप में पहचाना गया। उस वक्त उनकी उम्र 12 साल थी। इसी तरह उर्मिला भी 'मासूम' से पहचान बनाने में कामयाब रहीं। बॉलिवुड में बच्चों पर फिल्में तो बनी हैं, लेकिन ऐसी फिल्मों को उंगलियों पर गिना जा सकता है, जिन्होंने वाकई बच्चों के दिलोदिमाग पर असर छोड़ा। जाहिर है, बॉलिवुड के निर्माता-निर्देशकों के पास इस दिशा में सार्थक करने को अभी काफी कुछ है।
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