Tuesday, March 31, 2009

बेकाबू हो चुके हैं पड़ोस के हालात

पाकिस्तान में लाहौर में एक पुलिस ट्रेनिंग सेंटर पर हुए आतंकी हमले से यह जाहिर हो चुका है ​कि पाकिस्तान में हालात पूरी तरह से बेकाबू हो चुके हैं। श्रीलंकाई क्रिकेट टीम पर हमले के बाद भी पाक सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी रही, दुनिया को दिखावे के लिए नेताओं के बयान भी आते रहे लेकिन पिछले एक महीने के भीतर चार बड़ी आतंकी वारदातें कुछ और ही कहानी कह रहे हैं। इस सरकार को इससे कोई मतलब नहीं ​कि रावलपिंडी में होटल के पास विस्फोट में कितने मारे जाते हैं या फिर खैबर की मस्जिद में नमाजियों पर किस कदर कट्टरपंथियों का कहर टूटा। पाक सरकार को इससे कोई मतलब नहीं क्योंकि वह कट्टरपंथियों के हाथों का खिलौना बन चुकी है.
दुनिया की सबसे खूबसूरत स्थानों में एक स्वात घाटी में उनके कठमुल्लाई फरमान के आगे झुकते हुए शरीयत को मान्यता देने के बाद तालिबानों के हौंसले ​कितने बुलंद हुए, यह ​दुनिया से छिपा नहीं है. श्रीलकाई टीम पर हमला इसी का परिणाम रहा. पाकिस्तान के झंडाबरदार गद्दीनसीन कभी यह नहीं सोचते कि जिस आग को वे हवा देकर खुद की कुर्सी को कायनात की सीढ़ी बनाने पर तुले हैं, उसी की तपिश एक दिन पूरे देश को ले डूबेगी.
लेकिन क्या हम इतना कहकर ही सब कुछ खत्म कर लेंगे. क्या हमारे पड़ोस पाकिस्तान में इस तरह की घटनाओं को हम केवल उसका आंतरिक संकट मात्र मानकर निश्चिंत होकर बैठ सकेंगे. मुंबई में 26 नवंबर को हमले के बाद आतंकवादियों की कायराना हरकते लगातार बढ़ रही हैं. दरअसल आतंकियों के निशाने पर भारत और पाक दोनों ही हैं. पाकिस्तान की लगाई यह आग अगर पाक को नुकसान पहुंचाती है तो उसकी लपटे भारत को भी झुलसायेंगी इसमें संदेह नहीं है. आखिर क्या कारण है ​कि इस दौरान जबकि पाकिस्तान में कट्टरपंथियों का कहर टूट रहा है, जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा क्षेत्र में आतंकवादियों की घुसपैठ भी अप्रत्याशित रुप से बढ़ गयी है. कहीं पाकिस्तान के इरादे कुछ और तो नहीं.
बहरहाल, आज दक्षिण एशिया में कट्टरपंथ की आग जिस तरह फैलती जा रही है वह न केवल पाकिस्तान बल्कि पूरे विश्व समुदाय के ​लिए चिंता का विषय होना चाहिए. लेकिन खुद को दुनिया का नेता मानने वाला अमेरिका इस संकट को भी केवल अपने नफे नुकसान के नजरिए से देखने के अलावा और कुछ नहीं कर रहा. बराक ओबामा ने जो शब्जबाग दिखाये थे उसकी असलियत अब सबके सामने आ रही है. लेकिन वह भी बुश के नक्शेकदम पर ही जाते दिख रहे हैं. पिछले दिनों ओबामा ने पाक को डेढ अरब डॉलर की वार्षिक सहायता देने की घोषणा की और पहले की ही तरह उसे सैन्य सहायता देने का संकेत भी दिया. दरअसल अल कायदा के खिलाफ अभियान में पाकिस्तान का सहयोग उनकी रणनीतिक मजबूरी बन गयी है. ऐसे में और देश आतंकी हमलों से जूझ रहे हैं तो जूझते रहें.
आखिर क्या कारण है कि अमेरिकी खुफिया एजेंसियों द्वारा कई बार यह तथ्य उजागर करने के बावजूद कि आईएसआई आतंकवादियों को संरक्षण और बढ़ावा दे रही है, अमेरिकी सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठे रही. उसने तो अपनी आंख पर भी पट्टी ही बांध रखी है ​कि उसे यह दिखाई नहीं देता कि आतंक के खात्मे के नाम पर पाकिस्तान को दी जा रही मदद के बावजूद आतंकी हमलों में बेतहाशा बढ़ोत्तरी हो रही है. तालिबानों की बढ़ती ताकत से उसका कोई लेना देना नहीं है. निश्चित रूप से अमेरिका को भी अपना वह चश्मा बदलना होगा जिससे उसे आतंकवाद सिर्फ दुनिया के उसी हिस्से में नजर आता है, जहां उसके सैनिक घिरे होते हैं।
पाकिस्तान को उसके हुक्मरानों की दोहरी नीति (आतंकवाद को दूसरों के खिलाफ इस्तेमाल करने और अपने मामले में विलाप करने) की कीमत चुकानी पड़ रही है। इसी दोहरे रवैये ने आज ऐसी हालत पैदा कर दी है कि पाकिस्तान की सत्ता आतंकवादियों के सामने इस कदर असहाय नजर आती है। इस तेजी से फैल रही आग पर काबू पाने के लिए वहां के राजनीतिक नेतृत्व को अपनी दुविधा से उबरना होगा। अपने पूर्वाग्रह छोड़ कर पाकिस्तान और भारत मिलकर इसका मुकाबला कर सकते हैं।

1 comment:

  1. hi,
    you are going in right direction but not pakistan. pakistan ko thos kadam uthane honge

    shikha

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