Thursday, January 29, 2009

आख़िर कहां गए 412 पाकिस्तानी?

एंटी टेररिस्ट सेल (एटीएस) और नोएडा पुलिस ने बेशक दो पाकिस्तानी आतंकियों फारूक और अबू इस्माइल को मार गिराकर गणतंत्र दिवस पर राजधानी दिल्ली और आसपास के इलाकों में तबाही से बचा लिया हो, लेकिन खतरा फिलहाल कम नहीं हुआ है। बीते चार सालों से अकेले उत्तर प्रदेश के भीतर 412 पाकिस्तानी लापता हैं। वे कहां हैं और क्या कर रहे हैं, खुफिया एजंसियों को भी इसके बारे में ठोस जानकारी नहीं है। वे कभी भी देश में बड़े पैमाने पर तबाही का ताना बाना बुन सकते हैं।
वैसे भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आईएसआई के बड़े पैमाने पर ठिकाने हैं। खुफिया एजंसियां भी मान चुकी हैं कि इस इलाके में आतंकियों को शरण देने वालों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। यहां 100 से अधिक ठिकानों की पहचान की गई है जहां आतंकियों को पनाह मिल सकती है। इसमें पुराने ठिकाने भी हैं।
मैच देखने के बहाने किया घुसपैठ
वैसे तो आईएसआई के गढ़ के रूप में पश्चिमी उत्तर प्रदेश काफी पहले से स्थापित हो चुका है। इस बीच पूर्वांचल का आजमगढ़ जिला भी आतंक के गढ़ के रूप में सामने आया है। 2005 में भारत में भारत-पाकिस्तान के बीच क्रिकेट सीरीज हुई थी और मैच देखने के लिए वीजा लेकर ३७१ पाकिस्तानी आए थे। लेकिन वे सीरीज खत्म होने के बाद लौटे ही नहीं। पुलिस और खुफिया एजंसियां तभी से उनकी तलाश में हैं। गोरखपुर जोन से 26, लखनऊ जोन में 58, कानपुर जोन में 96, बरेली में 72, मेरठ में 44 और इलाहाबाद जोन से 31 पाकिस्तानी गायब हैं।
खुफिया रिपोर्ट्स से पता चला है कि पूर्वांचल में गोरखपुर, देवरिया, बस्ती, कुशीनगर, महाराज गंज, आजमगढ़, गोंडा, बहराइच, बलराम में आईएसआई के एजंटों के ठिकाने हैं। इन जिलों में पुलिस को विशेष चौकस किया गया है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में तो सहारनपुर और मुजफ्फरनगर आईएसआई एजंटों के सबसे बड़े गढ़ हैं ही। यहां आईएसआई एजंटों के जो 100 से अधिक ठिकाने हैं, वे अधिकतर ग्रामीण इलाकों में हैं। मेरठ, गाजियाबाद, बागपत, गौतमबुद्धनगर, बुलंदशहर और बिजनौर में भी आईएसआई की गतिविधियां खुफिया एजंसियों और पुलिस की नजर में आई हैं।

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