Wednesday, January 14, 2009

उल्लास का पर्व मकर संक्रान्ति



मकर संक्रान्ति नि:सर्ग का उत्सव है। पूरे भारत में संक्रान्ति कहीं खिचडाई के रूप में मनाई जाती है तो कहीं पतंगो को उडाया जाता है। दक्षिण में इसे पोंगल भी कहा जाता है। इस दिन खिचडी बनाकर लोग भगवान को भोग लगाते हैं। पौष और ब्राह्मणों को खिचडी खिलाते हैं।
मास में जब सूर्य मकर राशि पर आता है तब इस पर्व को मनाया जाता है। जनवरी माह के तेरहवें, चौदहवें या पन्द्रहवें दिन जब सूर्य धनु राशि को छोड मकर राशि में प्रवेश करता है, तब संक्रान्ति मनायी जाती है। मकर संक्रान्ति के दिन से सूर्य की उत्तरायण गति शुरू होती है। इसलिए इसको उत्तरायणी भी कहते है।
इस दिन संपूर्ण भारत में सूर्य के उत्तरायण होने का पर्व मनाया जाता है। दक्षिण में पोंगलऔर पंजाब में माघीया लोहडी के तौर पर इस अवसर पर उत्सव मनाया जाता है। गुजरात में इस दिन पतंगबाजी की जाती है। राजस्थान में भी आकाश पतंगो से अटा रहता है। कुछ भागों में ठीक संक्रान्ति वाले दिन ही पर्व होता है, कुछ में यह उत्सव रूप में लगातार तीन-चार दिन तक चलता रहता है। लेकिन हर जगह उपासना का केन्द्र सूर्य देव ही होते हैं।
शास्त्रों के अनुसार दक्षिणायन को देवताओं की रात्रि अर्थात नकारात्मकता का प्रतीक तथा उत्तरायण को देवताओं का दिन अर्थात सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है। इसलिए इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है। इस तिथि का एक अन्य रूप में भी महत्व बढ जाता है क्योंकि इस तिथि को खरमास समाप्त होता है और शुभ मास शुरू होता है। मकर संक्रान्ति के मौके पर गंगास्नान एवं गंगातट पर दान को अत्यंत शुभकारक माना गया है। इस पर्व पर तीर्थराज प्रयाग एवं गंगासागर में स्नान को महा स्नान की संज्ञा दी गई है।
मकर संक्रान्ति के दिन पितरों की मुक्ति के लिए तिल से श्राद्ध करना चाहिए। एक मान्यता यह भी है कि इस तिथि को ही स्वर्ग से गंगा की अमृत धारा धरती पर उतरी थी। शनि देव मकर राशि के स्वामी हैं और इस तिथि को सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं, अत: यह भी कहा जाता है कि सूर्य अपने पुत्र शनि देव से मिलने उनके घर जाते हैं।
मकर संक्रान्ति के विविध रूप

  • हरियाणा और पंजाब में लोहडी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन अंधेरा होते ही आग जलाकर अग्नि की पूजा करते हैं। तिल, गुड, चावल और भुने हुए मक्के की आहुति (तिलचौली) दी जाती है। इस अवसर पर लोग मूंगफली,तिल की गजक, रेवडियां आपस में बांटकर खुशियां मनाते हैं। बहुएं घर-घर जाकर लोकगीत गाकर लोहडी मांगती हैं।
  • उत्तरप्रदेश में इसे दान के पर्व के रूप में जन जाता है। इलाहाबाद में यह माघ मेलेके नाम से जाना जाता है। 14 जनवरी से इलाहाबाद में हर साल माघ मेले की शुरूआत होती है। यहां माघ मेला मकर संक्रान्ति से शुरू होकर शिवरात्रि तक चलता है। इस दिन गंगा स्नान करके तिल के मिष्ठान आदि को ब्राह्मणों व पूज्य व्यक्तियों को दान दिया जाता है। समूचे उत्तरप्रदेश में इस व्रत को खिचडी के नाम से जाना जाता है तथा इस दिन खिचडी सेवन और दान का अत्यधिक महत्व होता है।
  • महाराष्ट्र में इस दिन सभी विवाहित महिलाएं अपनी पहली संक्रान्ति पर कपास, तेल, नमक आदि चीजें अन्य सुहागिन महिलाओं को दान करती हैं। यहां ताल-गूल नामक हलवे के बांटने की प्रथा भी है।
  • बंगाल में इस पर्व पर स्नान के बाद तिल दान करने की प्रथा है। यहां गंगासागर में हर साल विशाल मेला लगता है। मकर संक्रान्ति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं। मान्यता यह भी है कि इस दिन यशोदा जी ने श्रीकृष्ण को प्राप्त करने के लिए व्रत किया था।
  • तमिलनाडु में इस पर्व को पोंगल के रूप में चार दिन तक मनाया जाता है। पहले दिन भोगी-पोंगल, दूसरे दिन सूर्य- पोंगल, तीसरे दिन मट्ठू -पोंगल अथवा केनू- पोंगल और चौथे व अंतिम दिन कन्या- पोंगल। पोंगल मनाने के लिए स्नान करके खुले आंगन में मिट्टी के बर्तन में खीर बनाई जाती है, जिसे पोंगल कहते हैं। इसके बाद सूर्य देव को नैवैद्य चढाया जाता है। उसके बाद खीर को प्रसाद के रूप में सभी ग्रहण करते हैं।
  • राजस्थान में मकर संक्रान्ति के दिन सुहागन महिलाएं वायना देकर आशीर्वाद प्राप्त करती हैं। साथ ही महिलाएं किसी भी सौभाग्यसूचक वस्तु का चौदह की संख्यां में पूजन एवं संकल्प कर चौदह ब्रााणों को दान कर देती हैं। संक्रान्ति के दिन सभी आयु वर्ग के लोग सुबह से ही घर की छतों पर आकर पतंगबाजी का मजा लेते हैं और शाम ढलने तक यही माहौल रहता है।

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