Tuesday, January 13, 2009

क्या कहे, शिबू सोरेन ने समझदारी का परिचय दिया

क्या कहे, शिबू सोरेन ने समझदारी का परिचय दिया और इस्तीफा देकर उस जनाधार को मजबूरी में स्वीकार कर लिया जिसने उन्हें मुख्यमंत्री के रूप में अस्वीकार कर दिया था। जनता सोरेन का कुर्सी मोह पहले से ही जानती थी सो फ़ैसला सुना चुकी थी लेकिन सोरेन ठहरे फेविकोल जो कुर्सी से चिपकने का आनंद उठाने के अलावा और कुछ जानना ही नही चाहते। और, अपनी फजीहत के बाद भद पिटवाने पर तुले हुए थे, हालाँकि वो भी पहले ही कहा बची हुई थी। बहरहाल,
शिबू सोरेन झारखंड में जनाधारवाले नेता रहे हैं। वैसे नेता का हारना और भी गंभीर है। यह सिर्फ झामुमो प्रत्याशी की पराजय नहीं, यूपीए की भी हार रही। कांग्रेस ने अपनी सारी ताकत झोंक दी थी. यूपीए के अन्य समर्थक भी उनके प्रचार में गये थे. इसलिए यह हार यूपीए के लिए दूरगामी संकेत है. यूपीए के नेतृत्व में मधु कोड़ा से लेकर शिबू सोरेन की जो सरकारें चलीं, उनकी अलोकप्रियता, भ्रष्टाचार और अराजकता के खिलाफ़ यह जनमत था।
जहाँ तक शिबू सोरेन की बात है तो, वह मधु कोड़ा के कुराज के मुकाबले और अधिक कुराज बढ़ाने में ही लगे हुए थे। जो टीम उन्होंने बनायी, उसका संदेश जनता की समझ में आ चुका था। किसी पर कभी सीबीआइ जांच हई थी या कोई अचानक बाहर से रातोंरात आ टपका। उनके राज्य में यह भी पुष्टि हो गयी कि मंत्रियों के भ्रष्टाचार का क्या रूप था? उच्च न्यायालय में मंत्रियों के भ्रष्टाचार के खिलाफ़ मामला चल रहा है. विजिलेंस ने दो पूर्व मंत्रियों के खिलाफ़ जांच रिपोर्ट सौंप दी है. ये तथ्य सरकार की कार्यसंस्कृति के संकेत थे। पिछले कुछेक सालों से सरकार में रहते हए, सरकार के लोगों ने संविधान, कानून और लोकमर्यादा को मजाक बना दिया है. शिबू सोरेन की यह हार, इन सभी चीजों का परिणाम है। इस्तीफे के बाद सोरेन ने कहा कि लोकतांत्रिक परंपरानुसार मैंने इस्तीफा दे दिया है। जैसे उनका मंतव्य हो की उनकी चले तो इस्तीफा देने की जहमत नही उठाते।
वो कहते हैं, शेर के मुंह में खून लगने से वह आदमखोर बनता है. झारखंड के जो नेता सत्ता में हैं, वे इसी तरह सत्ता के लिए मदांध हैं. वे सत्ता छोड़ कर कहीं नहीं रह सकते. राज्य को बेचना, दलाली करना, सड़कें चुराना जैसे काम ये लोग करते रहे हैं. यह कमाई यहां से लेकर दिल्ली तक बांटते रहे हैं। ऐसी स्थिति में झारखंड की राजनीति से लाभ कमानेवाले ये तत्व चाहेंगे कि कोई शिखंडी सरकार बने. भ्रष्ट सरकार बने, ताकि धनार्जन होता रहे.
तमाड़ चुनाव ने झारखंड की राजनीति में एक नया चेहरा दिया है, गोपाल कृष्ण पतर। शिबू सोरेन को हरा कर वह रातोंरात मशहूर हो गये हैं। भविष्य में उनकी भूमिका भी गौर करने लायक होगी। वैसे बात चली है मुख्यमंत्रियों के हरने की तो बताते चले शिबू सोरेन देश के तीसरे मुख्यमंत्री हैं, जो मुख्यमंत्री होते हए उपचुनाव हार गये।
उत्तरप्रदेश में त्रिभुवन नारायण सिंह मुख्यमंत्री रहते हए मणिराम (गोरखपुर के पास) विधानसभा क्षेत्र से चुनाव हारे थे। वह आजादी की लड़ाई के सिपाही थे। केंद्र में उद्योग मंत्री रहे। उन्होंने कहा, एक मुख्यमंत्री को अपने चुनाव के प्रचार में नहीं जाना चाहिए। जनता पसंद करेगी, तो चुनेगी। वह एक दिन भी प्रचार के लिए नहीं गये। गांधीवादी राजनीति के तहत आचरण किया। चुनाव हारे, तो तुरंत पद छोड़ा, मुख्यमंत्री आवास छोड़ा, वह नैतिक राजनीति की पराजय थी। पर झारखंड में शिबू सोरेन ने सारी ताकत झोंक दी थी. फ़िर भी वह भारी मतों से हारे. भगवन जरा सोरेन को इतनी नैतिकता दे देना की वो त्रिभुवन नारायण सिंह से अपनी तुलना न कर बैठे.

1 comment:

  1. sudhir ji, news se hatkar jharkhand ki rajniti par apki tippari chubhne wali rahi. ham aage bhi kuchh aise hi comments ki ummid rakhte hain.
    sanjayekawana@rediffmail.com

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