Friday, December 5, 2008

250 करोड़ खर्च होते हैं नेताओं की सिक्यूरिटी पर

पब्लिक के बीच स्टेटस चाहने वाले नेताओं की सुरक्षा में एंटी टेरर एनएसजी क्रैक फोर्स के 1700 जवान तैनात हैं। यानी जिन जवानों को आतंकवाद के खिलाफ लड़ने के लिए ट्रेंड किया गया है वे नेताओं की हिफाजत में दिन-रात जुटे रहते हैं। आप जो अपना टैक्स चुकाते हैं, उसमें से एक बड़ी राशि ( 250 करोड़ रुपये) इन नेताओं की सुरक्षा पर खर्च हो जाती है। इनमें किसी एक पार्टी का नेता शामिल नहीं है, सिक्यूरिटी लेने के मामले में सभी नेताओं में भाईचारा है। जिन वीआईपी लोगों की सुरक्षा पर यह मोटी रकम खर्च की जाती है, उसमें पूर्व प्रधानमंत्री देवगौड़ा से लेकर अमर सिंह, रामविलास पासवान, सज्जन कुमार, बी. एल. जोशी, आर. एल. भाटिया, शरद यादव, रामेश्वर ठाकुर, ई. अहमद, मुरली मनोहर जोशी, बृजभूषण शरण और प्रमोद तिवारी जैसे नेता हैं। इन लोगों को यह सुरक्षा इसलिए दी गई हैं कि इनकी जिंदगी खतरे में है। यहां पर यह सवाल सहज ही उठता है कि जिन सज्जन कुमार को यह सुरक्षा मिली हुई है, उनके खिलाफ हत्या के मामले चल रहे हैं। बड़े पैमाने पर वीआईपी सिक्यूरिटी मुहैया कराने का नतीजा यह निकला है कि जिन्हें आतंकवादी विरोधी गतिविधियों के लिए तैयार किया था, वे अब राइफल लेकर किसी खादी वाले की सुरक्षा में लगे हुए हैं। विमान अपहरण पर कार्रवाई करने और एंटी टेरर ऑपरेशंस के लिए 1984 में नैशनल सिक्यूरिटी गार्ड्स (एनएसजी) का गठन किया गया था। एनएसजी के 2 विंग बनाए गए, जिसे स्पेशल ऐक्शन ग्रुप (एसएजी) और स्पेशल रेंजर्स ग्रुप (एसआरजी) नाम दिया गया। एसएजी में सेना के जवानों को डेपुटेशन पर भेजा जाता है जबकि एसआरजी में आईटीबीपी, सीआईएसएफ, सीआरपीएफ, बीएसएफ और एसएसबी के जवान डेपुटेशन पर भेजे जाते हैं। इसी एसआरजी में से आधे से ज्यादा जवानों को वीआईपी सिक्यूरिटी में लगा दिया गया है।

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