Monday, November 10, 2008

175 साल से फैसले की बाट जोहता एक केस

भारतीय न्याय प्रणाली के पहिये धीरे-धीरे आगे बढ़ते हैं, पर कभी-कभार ऐसा भी होता है कि वह आगे बढ़ ही नही पाते। बंगाल के एक शाही परिवार की संपत्ति का मामला भी एक ऐसा ही केस है, जो पिछले 175 साल से फैसले की बाट जोह रहा है। यह केस फिलहाल कलकत्ता हाई कोर्ट में पेंडिंग है। पिछले 175 साल से लंबित पड़े इस मामले को देश का सबसे लंबा खिंचने वाला केस माना जा रहा है।
जिस संपत्ति को लेकर विवाद है, वह असल में राजा राजकृष्ण देव की है। राजा बंगाल के शोवा बाजार शाही परिवार के 18वीं सदी के जमींदार थे। अब राजा की संपत्ति पर उनके वारिस, जो कि करीब दो सौ की संख्या में हैं, अपना हक मांग रहे हैं। संपत्ति के दावेदार ही नहीं, संपत्ति का लेखा-जोखा भी काफी लंबा-चौड़ा है। उत्तरी कोलकाता में राजा के नाम पर सात बंगले हैं। जबकि करीब एक लाख एकड़ जमीन तो अब बांग्लादेश में है। पश्चिम बंगाल के कम से कम तीन जिलों में ज़मीन के बड़े हिस्से और सुतनती गांव का आधा इलाका भी राजा के नाम पर है।
मॉडर्न कोलकाता जिन तीन गांवों से मिलकर बनता है, उनमें से एक सुतनती है। पर यह सब अब भी अदालत द्वारा नियुक्त रिसीवर के हाथ में है। राजा के एक वंशज ने बताया कि हम सिर्फ नाम के ही राजा हैं। हमारे पास न तो मंदिरों के रखरखाव के लिए पैसा है और न ही पूजा के लिए। ध्यान हो कि शोवा बाजार की दुर्गा पूजा कोलकाता में अपने आप में एक संस्थान की तरह है। संपत्ति को लेकर विवाद 1823 में राजा की मृत्यु के साथ शुरू हुआ। वह अपने सात बेटों को जमीन बांट गए थे। पर बेटों ने जमीन को अपने ऐशोआराम पर खर्च के लिए बेचना शुरू कर दिया। पहली बार मामला अदालत में 1833 में आया, जब राजा के एक एग्जेक्युटिव ने संपत्ति की बिक्री पर रोक लगाने की मांग की। 22 साल तक सुनवाई के बाद अदालत ने एक ब्रिटिश वकील को संपत्ति के रखरखाव के लिए नियुक्त किया और तब से मामला खिंचता ही चला आ रहा है।

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