Friday, November 14, 2008

मधुशाला के खिलाफ फतवा


हरिवंश राय बच्चन की अमर रचना 'मधुशाला' अब कुछ मुस्लिम धर्मगुरुओं के निशाने पर है। इन धर्मगुरुओं ने मधुशाला को इस्लाम विरोधी बताते हुए इसके खिलाफ फतवा जारी कर दिया है। मुस्लिम धर्मगुरु मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली का कहना है कि मधुशाला की कुछ पंक्तियां मस्जिद की बेइज्जती करती हैं।

उन्होंने कहा कि मस्जिद की तुलना मधुशाला से की गई है, जो बेहद आपत्तिजनक है। वहीं मस्जिद को विधवा और मधुशाला को सदा-सुहागिन बताए जाने पर भी फिरंगी महली को सख्त ऐतराज है। मधुशाला की जिन पंक्तियों पर उन्हें ऐतराज हैं, वे हैं:

'शेख , कहां तुलना हो सकती मस्जिद की मदिरालय से,
चिर विधवा है मस्जिद तेरी , सदा सुहागिन मधुशाला।
बजी नफ़ीरी और नमाज़ी भूल गया अल्लाताला ,
गाज गिरी , पर ध्यान सुरा में मग्न रहा पीनेवाला।
शेख , बुरा मत मानो इसको , साफ़ कहूं तो मस्जिद को,
अभी युगों तक सिखलाएगी ध्यान लगाना मधुशाला।

हालांकि, मधुशाला में कई जगह हिंदू मुस्लिम एकता और गंगा-जमुनी तहजीब का भी जिक्र है, मसलन : ' मुसलमान औ ' हिन्दू है दो , एक , मगर , उनका प्याला,
एक , मगर , उनका मदिरालय , एक , मगर , उनकी हाला।
या फिर
दोनों रहते एक न जब तक मस्जिद मन्दिर में जाते ,
बैर बढ़ाते मस्जिद मन्दिर मेल कराती मधुशाला !
कुछ धर्मगुरुओं के विरोध के उलट अदब और साहित्य के जानकार इस विरोध को बेबुनियाद बताते हैं। उनका कहना है कि साहित्यिक रचनाओं को इस तरह के विवाद से दूर रखा जाना चाहिए। उदाहरण के तौर पर वे गालिब के शेर का जिक्र करते हैं जिसमें कहा गया है-
जाहिद शराब पीने दे मस्जिद में बैठकर,
या वो जगह बता जहां पर खुदा न हो।

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