Saturday, December 6, 2008

जिसने हमें दिए कई गहरे जख्म

लश्कर-ए-तैबा
किसने, कहां की स्थापना
लश्कर-ए-तैबा का मतलब 'खुदा की फौज' या 'नेक, ईमानदार व धार्मिक लोगों की सेना' होता है। इसकी स्थापना दो दशक पहले हाफिज मोहम्मद सईद ने अफगानिस्तान के कुनार प्रांत में की थी। पहले लाहौर के पास इसका मुख्यालय था जो बाद में मुजफ्फराबाद शिफ्ट हो गया। पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) में कई ट्रेनिंग कैंप चला रहा है यह संगठन।
क्या है इसका इतिहास
1980 के दशक में अफगानिस्तान में सोवियत संघ के समर्थन वाली नजीबुल्ला सरकार के खिलाफ लड़ने के निए लश्कर को सीआईए और आईएसआई का शुरुआती समर्थन मिला था। अफगानिस्तान से सोवियत संघ के वापस हटने के बाद सीआईए ने अपना समर्थन बंद कर दिया, लेकिन आईएसआई का समर्थन जारी है। अमेरिकी सरकार ने कुनाड (अफगानिस्तान) में लश्कर के गुरिल्ला ट्रेनिंग कैंप के गठन में सहयोग दिया था। अफगानिस्तान में सोवियत संघ के समर्थन वाली सरकार के खिलाफ अफगानी आतंकवादी संगठनों को प्रशिक्षित करने के लिए सीआईए ने लाहौर के समीप मुरीदके में लश्कर का बेस कैंप बनवाने में मदद की जो 80 एकड़ में फैला था।
लश्कर दरअसल मरकज-उद-दावा-वल-इरशाद (एमडीआई) का मिलिट्री विंग है। एमडीआई पाकिस्तान का एक कट्टर धार्मिक संगठन है। इसका बेस मुरीदके में है और इसका अध्यक्ष हाफिज मोहम्मद सईद है। सईद लश्कर का 'अमीर' भी है। वह अभी जमात-उद-दावा के नाम से चैरिटी चलाता है और इसका मुखिया भी है। इसकी दो स्वतंत्र शाखाएं हैं। एक इस्लाम का प्रचार करता है जिसका अध्यक्ष सईद है। दूसरा, मौलाना अब्दुल वाहिद कश्मीरी के नेतृत्व में कश्मीर और अन्य जगहों पर अपनी हिंसक गतिविधियों को अंजाम देता है।
क्या है इसका मकसद
लश्कर का मुख्य उद्देश्य दक्षिण एशिया, रूस और चीन में भी इस्लाम का प्रभुत्व स्थापित करना है। इसके अलावा कश्मीर मुद्दे पर भारत की संप्रुभता को चुनौती देना है। साथ ही, इसका मकसद पाकिस्तान के आसपास वाले देशों में मुस्लिम बहुल इलाकों को एकजुट करना भी है।
किसने संभाली है बागडोर
लश्कर का हेडक्वॉर्टर 2001 तक लाहौर के पास था, लेकिन जमात-उद-दावा से अलग होने और राजनीतिक दबाव के कारण कश्मीर को आजाद कराने के मकसद से मुजफ्फराबाद (पाक अधिकृत कश्मीर) शिफ्ट कर दिया गया। इसने एक नए जनरल काउंसिल का भी गठन किया है। इसमें मौलाना अब्दुल वाहिद कश्मीरी (सुप्रीम लीडर) और जाकी-उर-रहमान लखवी (जम्मू-कश्मीर का सुप्रीम कमांडर) हैं। इसके अलावा काउंसिल के अन्य सदस्यों में अब्दुल्ला (अनंतनाग, इस्लामाबाद), हाजी मोहम्मद आजम (पुंछ), मुजम्मिल बट (डोडा), मोहम्मद उमेर (बारामुला), चौधरी अब्दुल्ला खालिद चौहान (बाग), रफीक अख्तर (मुजफ्फराबाद), आफताब हुसैन (कोटली), फैसल डार (श्रीनगर), चौधरी यूसुफ (मीरपुर) और मौलाना मोहम्मद शरीफ बालघरी (बलतिस्तान) हैं। ये सभी जिला कमांडर हैं। सईद तो ऑर्गनाइजेशन का हेड है, लेकिन बताया जाता है कि इसका ऑपरेशनल चीफ सैफुल्ला है।
कौन है इसका रहनुमा
पाकिस्तानी सेना और खुफिया एजंसी आईएसआई से इसे लगातार सहयोग मिलता रहा है। अल कायदा से भी इसे इमदाद मिलती है। पहले तो यह संगठन मस्जिदों और दुकानों के सामने चंदा बॉक्स रखकर पैसे जुटाता था। लेकिन 2002 के बाद से इसने चैरिटी के नाम पर ब्रिटेन, भारत, खाड़ी के देशों, गैर-इस्लामिक एनजीओ और पाकिस्तानी और कश्मीरी कारोबारियों से धन इकट्ठा करना शुरू किया। भूकंप प्रभावितों के लिए भी राशि जुटाई गई। लेकिन चैरिटी के नाम पर जुटाए गए धन का इस्तेमाल आतंकवादी गतिविधियों में किया गया।

No comments:

Post a Comment

आपकी टिप्पणी हमारे लिए बेहद खास है।
अत: टिप्पणीकर उत्साह बढ़ाते रहें।
आपको टिप्पणी के लिए अग्रिम धन्यवाद।