Saturday, December 13, 2008

एक डेडलाइन तय की जानी चाहिए


पुलिस ने आतंकवादी हमले में जिंदा पकड़े गए अजमल कसब के खिलाफ 11 केस दर्ज किए हैं और तकनीकी रूप से हर केस में पुलिस को अदालत से उसे 14 दिन तक हिरासत में रखने की इजाजत मिल सकती है। कुल मिलाकर 164 दिन यानी पांच महीने से भी ज्यादा।
मुंबई पुलिस कहती है कि कसब जैसे आतंकी की लंबे समय तक ट्रेनिंग हुई है और महज कुछ दिनों की पूछताछ में उससे सारी बातें नहीं उलगवाई जा सकती हैं। इसके अलावा कई अन्य सुरक्षा एजंसियां भी कसब से पूछताछ करना चाहती हैं।
सात साल पहले आज ही के दिन भारतीय संसद पर आतंकी हमला हुआ था। भारत पर हुए आतंकी हमलों में इसका कोई सानी नहीं है , मुंबई हमला भी नहीं। मुंबई में आतंकियों के निशाने पर सबसे कम सुरक्षा वाली जगहें जैसे फाइव स्टार होटेल , रेस्ट्रॉन्ट , रेलवे स्टेशन और अस्पताल थे। फिर संसद हमले के आरोपी अफजल को फांसी की सजा सुनाने में ट्रायल कोर्ट को एक साल का वक्त लगा।
इसके करीब एक साल बाद 2003 में हाई कोर्ट ने अफजल की सजा पर अपनी मोहर लगाई। डेढ़ साल बाद , अगस्त 2005 में सुप्रीम कोर्ट ने भी अफजल की फांसी के फरमान पर दस्तखत कर दिए। लेकिन अफजल अब भी फांसी के फंदे से काफी दूर है।
मुंबई पुलिस इसी बात पर अपनी पीठ ठोक रही है कि उसके पास कम से कम पांच महीने कसब को हिरासत में रखने का कारण है। कायदा तो यह कहता है कि एक शख्स जिसे दर्जनों लोगों ने 26 नवंबर की रात मुंबई में गोलियां बरसाते हुए देखा , पांच महीने के भीतर तो उसे उसके किए की सजा दे ही डालनी चाहिए। कसब का जुर्म जगजाहिर है। वह एक ऐसे समूह का सदस्य था जिसने भारत की धरती पर भारत के खिलाफ जंग का ऐलान किया। 26 नवंबर की रात से अब तक एक पखवाड़े से भी ज्यादा वक्त बीत चुका है लेकिन उसके खिलाफ चार्जशीट तक नहीं दाखिल की गई है। अब पांच महीने पूछताछ ही चलेगी तो केस कब चलेगा ?
हमारा रेस्पॉन्स किसी घटना की गंभीरता या भयावहता के लिहाज से बदलता ही नहीं है। हम तो एक लीक पर चलते हैं। मुकदमा चलेगा , सजा होगी , फिर हाई कोर्ट में अपील , उसके बाद सुप्रीम कोर्ट में जिरह। वहां से भी फांसी की सजा हो जाए तो राष्ट्रपति के पास वीटो है। राष्ट्रपति भी मोहर लगा दे तो सरकार के पास फाइल लटकाने का अधिकार तो है ही... जब देश पर हमला हुआ है तो सुनवाई सीधे सुप्रीम कोर्ट में ही क्यों न करवाई जाए ?
भारत में किसी भी नागरिक को , उसके मूल अधिकार का हनन होने पर सीधे सुप्रीम कोर्ट में अपील करने की सहूलियत है. vastav mein एक डेडलाइन तय की जानी चाहिए जिसके भीतर फैसला हो जाए।
आतंकवाद के खिलाफ नाकाम रहने की जिस तरह की छवि हमारी बनती जा रही है , उसे बदलना होगा। यह पाकिस्तान पर हमला या बमबारी करने से नहीं होगा बल्कि देश के भीतर पहले से मौजूद सिस्टम्स को सुचारू बनाने से होगा। अजमल कसब का जिंदा पकड़ा जाना हमारे लिए एक टेस्ट केस है। इस बार हमें खुद को साबित करना होगा।

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